Book Title: Parvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Author(s): Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Chinubhai Trikamlal Saraf
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पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार रागादिकनो त्याग. पौरुषी आदि पच्चखाण अने पर्वना दिवसे करवा योग्य अनुष्ठानवडे अष्टमी, चतुर्दशी अमावास्या अने पूर्णिमाना दिवसे सर्वथी आहार-शीर सत्कार-ब्रह्मचर्य -अव्यापाररुप चारे प्रकारना पौषधनुं सम्यक् प्रकारे पालन करतां विचरे छे.' आ चारित्रतिथिओ कहेवाय छे. उपरोक्त तिथिओना दिवसे श्रावकोने पौषधव्रत करवानुं कर्तुं छे, अने साधुओ तो चारित्रवंत छे तेथी तप करवान का छे. ए तिथिओना दिवसे तप न करे तो व्यवहारभाष्यमां प्रायश्चित कहेलं छे. जुओ व्यवहारभाष्य टीकानो पाठ
अष्टम्यां पाक्षिके चतुर्थ न करोति तदामासलघु (पुरिम) मासगुरु (एकाशनक) चातुर्मासके सांवत्सरिके षष्ठ अष्टमं न करोति तदा चातुर्मासलघु (आचाम्लं) चातुर्मास गुरु (उपवास) प्रायश्चित्तं ॥ . अर्थ- आठम अने चौदशे उपवास न करे तो पुरिमुख अने एकासणानुं प्रायश्चित्त आवे अने चउमासी तथा संवच्छरीनो छ? अठ्ठम न करे तो चार लघुमास अने चार गुरुमासद् प्राययश्चित्त आवे. तपागच्छनी बृहत्समाचारीमा पर्वतिथिनी क्षय के वृद्धि मानवानो स्पष्ट निषेध करेल छे. जुओ ते पाठ
अट्ठमी चाउद्दसी उद्दिट्ठा पुण्णिमाइसु ॥ पबतिहिसु खयबुडि न हवइ इइ वयणा उ ॥ १॥
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