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परमात्मा बनने की कला
अरिहंतोपदेश
संसार शब्द लिखा हो, वह 'नाम संसार' कहलाएगा। संसार के चारों गतियों का चित्र बना हो, उसे 'स्थापना संसार' कहा जाएगा। एक गति से दूसरी गति में जीव का भ्रमण करना, यह 'द्रव्य संसार' कहलाएगा। आत्मा में विषय-कषायों के परिणाम होने पर, वह 'भाव संसार' कहलाएगा। वैसे सदैव द्रव्य ही भाव उत्पन्न का कारण होता है। परन्तु यहाँ विपरीत नियम है। भाव संसार, द्रव्य संसार का कारण है। चारों गतियों में जीव का भ्रमण करना यह विषय-कषाय के परिणामों के कारण ही है। 'योग शास्त्र' में भी कहा गया है कि विषय कषाय के पराधीन आत्मा ही संसार है। राग-द्वेष से युक्त आत्मा ही संसार है। जितने परिणाम बिगड़ते हैं, उतने द्रव्य संसार (भव) बिगड़ते हैं।
वासुपूज्य स्वामी जी के स्तवन में उपाध्याय जी महाराज ने कहा कि 'क्लेशवासित मन ही संसार है', अर्थात् क्लेश, रति, अरति, निंदा, द्वेष, इन सभी में दौड़ता मन ही संसार है। इस एक पंक्ति में ही कितना गूढ़ अर्थ व तत्त्व भर दिया है। मन को समझा दो, क्योंकि यही मन संसार में भटकाता है। द्रव्य संसार तो भयंकर लगता है, पर कभी-कभी यह भाव संसार वास्तव में अच्छा नहीं लगता है। यहाँ राग करना तो अच्छा लगता है। परन्तु राग के आधार पर आया हुआ दुःख भयंकर लगता है। दुःख रूप राग-द्वेष को समझने के पश्चात् छोड़ने का प्रयत्न करना है। शुभ और शुद्ध धर्म से बढ़कर संसार में और कुछ अच्छा नहीं है।
अज्ञानी जीवों की नजर हमेशा द्रव्य संसार पर होती है। जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ता है वैसे-वैसे भाव संसार पर नजर टिकती है। जब एक-एक विषय-कषाय भयंकर दिखाई देने लगता है, तब द्रव्य और भाव संसार, दोनों ही दुःख रूप है, दुःख का कारण है, दुःख देने वाला, दुःख की परम्परा को बढ़ाने वाला है। यह ज्ञात हो जाता है। जैसे- आग का छोटा सा कण भी पेट्रोल की टंकी पर गिरता है तो बड़ी दुर्घटना का सर्जन करता है। वैसे ही थोड़ा सा भी किया गया क्रोध, मान, माया रूप कषाय भयंकर संसार में भटकाने वाला है, गर्त में ले जाने वाला है। थोड़ा सा कर्ज भी किसी का देना हो तो उपेक्षा किए बिना चुका देना चाहिए। छोटा सा भी घाव हो तो उसकी उपेक्षा किए बिना इलाज करवाना चाहिए। उसी तरह थोड़ा भी रागादि भाव भीतर में दिखाई देता हो तो बिना उपेक्षा उस राग का त्याग कर देना चाहिए। आज छोटा सा दोष दिखाई देने वाला कल बड़ा विस्फोट करने वाला बन सकता है और उसका परिणाम कितना दुःखद् होगा, यह सोचना भी दुःखदायी है।
संसार अनादि काल से चल रहा है तो इससे जीवों को किस बात की तकलीफ हो रही है? जिससे कहा जाता है कि संसार का उच्छेद करना चाहिए। जैसे सूर्य, चन्द्र,
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