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परमात्मा बनने की कला
दुष्कृत
ऐसे पाप भीतर सत्ता में पड़े हुए हैं। यह संसार बन्ध से नहीं, अनुबन्ध से चलता है । प्रणिधान अनुबंध कराता है । प्रणिधान पूर्वक के पाप-उदय के समय नवीन पाप बांधकर पाप की परम्परा को चलाते रहते हैं।
पाप का राग तोड़ें
आत्मा में अशुभ रस वाले कर्म रूपी टाईम-बम भरे पड़े हैं। चाहे जब उदय में आ सकते हैं। कुछ भी नहीं कह सकते अर्थात् अशुभ कर्म रूपी बम का विस्फोट कभी भी हो सकता है। यदि प्रणिधान पूर्वक झूठ बोलना, चोरी करना, अनीति, अन्याय, भोगविलास में तीव्र अनुबन्ध किया । अनादिकाल के अभ्यास से इस जीव को पापकर्म में ही रस आता है, उसी में आनन्द और उल्लास आता है । जिससे तीव्र अनुबंध वाले कर्मों का बन्ध किया है, इसलिए इससे विपरीत कर्म के लिए दुष्कृत्य की गर्हा भी प्रणिधान पूर्वक करनी होगी।
जीव सत्वहीन है। वर्तमान में सर्वत्र राग के ही निमित्त मिलते हैं । उसी में सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हो जाता है। पूर्वकाल की तरह अल्प राग-द्वेष का जीवन तो फिर भी ठीक, पर यहाँ तो कर्मों का लेप जबरदस्त लगा हुआ है। कर्मों का बंध करना आसान है, किन्तु उन्हीं कर्मों का उदय आने पर भोगना बड़ा कठिन होता है। क्षण में बांधे गये कर्म को भोगने में पल्योपम - सागरोपम लग जाते हैं।
इसलिए चार शरण, दुष्कृत्य गर्हा, सुकृत अनुमोदना इनका त्रिकाल चिन्तन करना चाहिए। जिससे अन्त समय भाव टिके रह जाएं और समाधि प्राप्त हो जाए। जीवन पर्यन्त के काले धन्धे व पापों को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि समाधि तो अभी अति दुर्लभ है। शायद कभी देव गुरु की कृपा-दृष्टि हो जाए और अध्यवसाय अच्छे हो जाएं तो अलग बात है। जीवन में कभी परमात्मा की प्रतिष्ठा करवाई हो, उस समय यदि उच्च भाव थे और अन्त समय में वह याद आ जाएं, भाव शुभ बन जाएं तो समाधि मृत्यु हो जाए, अन्यथा दुर्लभ है।
आत्मा की निंदा : तोड़े भव दुःख फन्दा
प्रतिदिन बार-बार स्मरण करते रहो 'मैं पापी हूँ, नीच गति गामी हूँ', मेरी प्रवृत्ति कितनी खराब है। कषाय रूपी अध्यवसाय की तलवार कितनी बार गुरु महाराज पर चलाई है। मैं यानि कौन? जगत् अनन्त पापों से भरा हुआ है । भूतकाल में लाखों, करोड़ों पाप हम करके आए हैं तथा नये पाप करते ही जा रहे हैं। ऐसे में कैसे सद्गति प्राप्त होगी ? कौन सद्गति देगा? ऐसे ही मोक्ष नहीं मिलता। अनन्तकाल और भटकना पड़े, ऐसी तो हमारी तैयारी है। दाल में थोड़ा नमक ज्यादा गिर जाए तो सहन करने की ताकत नहीं है। पत्नी पर
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