Book Title: Parmatma Banne ki Kala
Author(s): Priyranjanashreeji
Publisher: Parshwamani Tirth

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Page 218
________________ परमात्मा बनने की कला सुकृत अनुमोद - आपको मेरी बार-बार वन्दना। - वीतराग सर्वज्ञ प्रणीत जिनशासन की जय हो। - सर्वोत्तम ऐसे सम्यक्त्व की प्राप्ति करके जगत के सभी जीव सुखी हों। सुख हों। सुखी हों। अब सूत्र की समाप्ति करते समय अन्तिम मंगल करते हैं। देवताओं से पूजित ऐ इन्द्रदेवता और गणधर महर्षि भी जिन्हें वन्दन करते हैं, ऐसे परम गुरु वीतराग परमात्मा के नमस्कार हो। बाकी नमस्कार के योग्य ऐसे गुणाधिक आचार्यादि महाराजाओं को नमस्का हो। सर्वज्ञ प्रभु का शासन मिथ्या दर्शनों को हटाकर विजय प्राप्त करे, जयवन्त हो प्राणिजगत् वरबोधि-लाभ से, अर्थात् मिथ्यात्व दोष टालकर सम्यग्दर्शन आदि शुद्ध घर के स्पर्श से सुखी बने, सुखी बने, सुखी बने। इस प्रकार ‘पाप प्रतिघात से' अर्थात् अशुभ करवाने वाले आश्रवभूत भावों वे विच्छेदपूर्वक 'गुणबीज का आधान' अर्थात् भाव से प्राणाति-पातादि-विरमण रूपी गुण वे बीज का आत्मा में स्थापन हो, अर्थात् उस प्रकार के शुभानुबन्धक विचित्र विपाक वाले कर का आधान सूचित किया गया है। इसे सूचित करने वाला 'पाप-प्रतिघात-गुणबीजाधान सूत्र समाप्त हुआ। for par 216.vate Use Only Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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