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परमात्मा बनने की कला
दुष्कृत उनकी उपास़ना नहीं करते हैं तो हम कैसे माने जाएँगे? कहते हैं, परमात्मा के प्रभाव से जीवन में एक भी प्रतिकूलता नहीं रहती तथा अनुकूलता आए बिना नहीं रहती । इस विश्व की कोई भी सम्पत्ति ऐसी नहीं, जो उनके प्रभाव से नहीं मिल सकती और एक भी आपत्ति ऐसी नहीं जो नहीं टल सकती है। दुनिया के खान-पान, सम्मान-सत्कार, पैसा-कुटुम्ब सब कुछ अनुकूल हो सकते हैं। रोग, दरिद्रता सभी आपत्तियाँ नष्ट हो सकती हैं। वह कैसे ? देवों के देव इन्द्र महाराजा से पूछिए - 'आप इन्द्र कैसे बने ?' वह भी एक ही बात कहेंगे" परमात्मा की आज्ञा का पालन करने से, देव गुरु के सेवा भक्ति से । '
खतरा
दूसरी तरफ देखें । अन्य राज्य के राजा अपने राज्य में सूचित करवाते हैं कि इस अश्व को जो मार देगा, उसको मुँहमांगा ईनाम दिया जाएगा। ईनाम सभी चाहते हैं, मोल लेना कोई नहीं चाहता। सूचना को सुनकर एक व्यक्ति ने कुछ विचार किया व इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया। अपने राजा का आदेश व आशीर्वाद लेकर वह व्यक्ति दूसरे राजा के राज्य में पहुँचा। यहाँ आकर वह पहले अश्वशाला में जाता है। लक्षणयुक्त अश्व को चारों ओर से निहारने के पश्चात् एक छोटा सा तृण का कांटा सहजता से अश्व शरीर में घोंप देता है।
कांटा छोटा व साधारण था, साथ ही दिखाई भी नहीं देता था। फिर भी उस काटे के प्रभाव से अश्व की हालत बिगड़ने लगी । प्रतिदिन उसकी काया सूखने लगी। नगर के राजा, प्रजा सभी चिन्तित हो गये । वैद्यों को बुलाया गया । अश्व को देखकर जाँच किया जाता, पर कुछ भी रोग नजर नहीं आता। बीमारी का पता न चले, तब तक इलाज कैसे करें। एक दिन एक अनुभवी वैद्य का आना हुआ। उसने अश्व की जांच की और उस अश्व के पूरे शरीर पर गीली मिट्टी लगा दी । जहाँ कांटा था, वहाँ पर मिट्टी शीघ्र सूख गई । वैद्य जी को पता चल गया कि यहाँ कुछ लगा हुआ है। तुरन्त उसे निकाल कर इलाज किया गया। अश्व पुनः हृष्ट-पुष्ट हो गया। शल्य निकला तो शरीर स्वस्थ्य हुआ। शल्य रहने से एक लाख भव बढ़े।
छोटा शल्य बड़ा कष्टदायक -रुक्मिणी की कथा
क्षितिप्रतिष्ठित नगर के राजा की पुत्री रुक्मिणी ने यौवन वय मे कदम रखा ही या कि राजा ने उसका विवाह योग्य राजकुमार के साथ कर दिया, परन्तु विवाह होते ही उसका पति यमशरण हो गया। बाल विधवा हो जाने से वह भयभीत हो गई। निराधार होने उसे जितना दुःख नहीं था, उससे भी अनेक गुना दुःख उसे आजीवन ब्रह्मचर्य पालने असमर्थता में लगा। वह अग्नि में कूदने की तैयारी करने लगी। उसके पिता ने उसे
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