Book Title: Parmatma Banne ki Kala
Author(s): Priyranjanashreeji
Publisher: Parshwamani Tirth

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Page 192
________________ परमात्मा बनने की कला इस पूरे दृष्टांत में महत्त्व की बात यह है कि ये उत्तम आत्माएँ 1. संसार को कारावास मानती थीं। 2. उन्हें संसार की किसी भी प्रवृति में रस नहीं था । 3. वे संसार के कार्य भी माता-पिता आदि स्वजनों के दबाव से ही करते थे, और उमंग से नहीं, सुकृत अनुमोदना 4. इन प्रवृतियों में प्रवृत्त होते हुए भी भावना तो साधु जीवन की साधना की तथा मोक्ष प्राप्ति की ही भावना भाया करते थे। मनोरथ की शक्ति यह है जिनशासन । जहाँ उच्च मनोरथ वाले को केवलज्ञान प्राप्त होता है। जैसे नागकेतु ने परमात्मा की पूजा करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया। ईलाची कुमार को रस्सी पर नाचते हुए केवलज्ञान प्राप्त हुआ। भरत चक्रवर्ती को अरीसा में देखते हुए केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। अतः दुनियाँ को हृदय में न बैठाकर जिनशासन को हृदय सिंहासन पर स्थापित करो। कह दो - हे मोहराजा ! हे रागगजेन्द्र और द्वेषकेशरी ! यह हृदय का सिहांसन आप लोगों के लिए नहीं है। मेरे देवाधिदेव और गुरु भगवन्तों के लिए है। मोहराजा तुम निकल जाओ । मेरा सिंहासन देव- गुरु के लिए है। यहाँ तुम्हारे लिए कोई स्थान नहीं है। सही तरीके से निकल कर, पुनः प्रवेशकर अपनी होशियारी नहीं दिखानी है। इसे कहते हैं भावपूर्वक शील का पालन । इच्छा से शील का पालन करना । सुकृत अनुमोदना में हमें ध्यान रखना है कि दूसरों की प्रशंसा जाहिर में करना चाहिए | स्वयं की बारम्बार सुकृत की अनुमोदना करने से सोया हुआ मान कषाय जाग जायेगा। इसलिए स्वयं की सुकृत अनुमोदना बारम्बार व जाहिर में न करें। गुणीजनों पर प्रमोद भाव महापुरूषों के सुकृतों की अनुमोदना हमें बारम्बार करनी चाहिए। सबके समक्ष जाहिर में करनी चाहिए। बहुमानपूर्वक करनी चाहिए । विनयविजय जी महाराज 'शांतसुधारस' में प्रमोद भावना में बताते हैं कि महापुरूषों के गुणों को देखकर हमें आनंदित होना चाहिए। गणधर पुण्डरिक स्वामी ने पाँच करोड़ मुनि भगवंतों के साथ अनशन द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। कार्तिक सुदी पूर्णिमा के दिन द्राविड़ वारिखिल्ल दस करोड़ मुनि भगवंतों के साथ मोक्ष पधारे। इन सभी मुनि भगवंतों का विचार आते ही मन आनन्दित, प्रफुल्लित हो जाना चाहिए। जिससे कठोर परिणाम निर्मल बनते हैं; परमात्म Jain Education International 190 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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