Book Title: Parmatma Banne ki Kala
Author(s): Priyranjanashreeji
Publisher: Parshwamani Tirth

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Page 211
________________ परमात्मा बनने की कला गुरु समपर्ण ही साधना की नींव उन्हें ही दीक्षा व केवलज्ञान की सफल प्राप्ति होती है जो गुरु को समर्पित होते हैं। प.पू. आ. श्री कलापूर्णसूरि जी म. सा. कहते थे- 'प्यास आज लगी है, पानी कल मिले तो कैसे चल सकता है ? हमें तो आज ही परमात्मा को प्राप्त करना है। अभी प्यास लगी है। आने वाले भव में पानी मिले तो नहीं चले। जहाँ बैठे हो, भगवान का ध्यान चलता रहे, स्वाध्याय के समय भी विचारों में भगवान के वचन होने चाहिए। शास्त्र के प्रत्येक वचन में परमात्मा के दर्शन करने हैं। गुरु की भक्ति ही हमें सच्ची शक्ति देती है । Jain Education International सुकृत अनुमोदना 209 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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