Book Title: Parmatma Banne ki Kala
Author(s): Priyranjanashreeji
Publisher: Parshwamani Tirth

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Page 183
________________ परमात्मा बनने की कला सुकृत अनुमोदना जैसे पर्वतों में शुजय पर्वत, मंत्रों में नवकार मन्त्र, राजाओं में राजा राम, नदियों में गंगा नदी उत्तम मानी गई है, वैसे ही धर्मों में उत्तमोत्तम धर्म भावधर्म माना गया है। सभी धर्मों में ज्येष्ठ भाव धर्म है। मानव देह में सबसे महत्त्वपूर्ण अंग मानव मस्तिष्क है। वैसे वह कुछ भी करते हुए दिखाई नहीं देता, किन्तु सम्पूर्ण देह का संचालन वही मस्तिष्क करता है। यदि मस्तिष्क देह के किसी भी अंग को गलत संदेशा पहुँचाए तो अनर्थ हो जाता है, वैसे ही सारी धार्मिक क्रियाओं का संचालक भाव ही है। प्रभु दर्शन के समय हम स्तुति बोलते हैं भावे भावना भाविए, भावे दीजे दान। भावे जिनवर पूजिए, भावे केवलज्ञान।। भाव भी भावपूर्वक होना चाहिए। कैसी अजीबोगरीब बात है यह। यूँ देखा जाए तो भाव का भाव स्पष्ट है- 'भावना भव नाशिनी।' हमारे महापुरूषों ने भावना को ही श्रेष्ठ बताकर कहा है कि भावना भवों का नाश करती है। यदि भावना नहीं तो फिर दान, शील, तप केवल संसार के सुख तक ही सीमित हो जाते हैं, किन्तु भाव का सम्बन्ध जुड़ा कि मोक्ष का कारण बन जाता है। दान-धर्म - पूर्व में हमने शालिभद्र की बात की थी। इसलिए सर्वप्रथम हम दान की महिमा को ही समझ लें। दान भावपूर्वक होना चाहिए। यदि भाव से रहित दान होगा तो उसमें मात्र कीर्ति की कामना होगी। यश कमाने की इच्छा होगी। पद-प्रतिष्ठा पाने की मनोकल्पना जागृत होगी। शिलालेखों पर अपना नाम अंकित करने की कामना प्रकट होगी। यह सब इसलिए होगा कि दान तो दिया जा रहा है, किन्तु भाव नहीं है। भाव रहित दान को हमारे ज्ञानी भगवन्तों ने मात्र धन का व्यय बताया है, धन की हानि कहा है, क्योंकि भाव रहित दान सच्चे अर्थ में दान भी नहीं रहता है, वहाँ बदले में कुछ प्राप्त करने की भावना जागृत हो उठेगी। मैं इतना दान करूँ तो मुझे क्या मिलेगा? क्या मेरा नाम समाचार पत्रों में चमकेगा। भाव रहित दान, दान न रहकर व्यापार हो जाएगा, सौदेबाजी हो जाएगी, क्योंकि फिर वहाँ मात्र दान रहेगा, शुभ भाव नहीं। भावना को भवनाशिनी कहा गया है। इसका कारण यह है कि भावरहित दान मात्र इस लोक एवं परलोक के फल को प्रदान कर सकता है किन्तु उस दान में जब भाव - 181 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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