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परमात्मा बनने की कला
अरिहंतोपदेश यहाँ उल्लेखनीय यह है कि तीव्र प्रणिधान वाले कर्म उच्च फल प्रदान करते हैं, क्योंकि तीनों लक्षणों से युक्त हैं। हमें भी अब निश्चित करना है कि धर्म क्रिया में सांसारिक भाव नहीं आने चाहिए। भगवान् का शासन ही महान् है। इस जिन शासन की तुलना में दूसरा कोई नहीं आ सकता है। क्षपक श्रेणी एवं तीर्थंकर नामकर्म, दोनों प्रणिधान के अन्तिम फल कहे गये हैं। नागकेतु ने भी परमात्मा की पूजा करते समय प्रणिधान को एकदम मजबूत बनाया था। उसी से क्षपक श्रेणी पर चढ़ गये।
जब बुढ़िया माँ पुष्प लेकर भगवान् की पूजा करने निकली, तभी राजा श्रेणिक अपने प्रजाजनों के साथ प्रभु दर्शन-वन्दन के लिए समवशरण में जा रहे थे। उसी भीड़ में बुढ़िया माँ भी चलने लगी, पर तेज गति से जा रही भीड़ के बीच बुढ़िया माँ आ गई और वहीं शुभ परिणामों सहित उसकी मृत्यु हो गई। मर कर वही माँ वैमानिक देवलोक में उत्पन्न
___जब 'सवि जीव करू शासन रसी' की ऐसी भावना मन में आती है, तभी तीर्थंकर नाम कर्म का बंध होता है। भावना मात्र मन से ही नहीं की, उसके अनुरूप क्रिया भी थी। यहाँ प्रणिधान मजबूत बना। प्रणिधान यानि मन-वचन-काया जिसमें ओतप्रोत हो अर्थात् संकल्प शक्ति जितनी मजबूत उतनी क्रिया में सफलता प्राप्त होती है।
प्रत्येक कार्य के चार चरण बताए गये हैं। इसी से कार्य सिद्ध होता है।
'षोडश शास्त्र' में साधक के लिए प्रणिधान, प्रवृत्ति, विघ्नजय, सिद्धि इस प्रकार क्रमशः चार चरण बताये गये हैं। 1. प्रणिधान - 'संकल्पात् सिद्धि जायते'। संकल्प से सिद्धि होती है। किसी कार्य को
करने का दृढ़ संकल्प करना ही आधा कार्य सम्पन्न हुआ समझना। क्योंकि प्रत्येक
कार्य का प्रारम्भ ही दृढ़ निर्णय पर संभावित है। · · जैसे- द्रौपदी पाँच पाण्डवों की पत्नी थी। एक बार जब नारद जी के घर आने पर द्रौपदी ने उनका विनय-बहुमान नहीं किया तो नारद जी को यह अच्छा नहीं लगा। बात मन में बस गई। द्रौपदी को इस बात का मजा चखाने के लिए नारद जी घातकी खण्ड द्वीप पहुँचे। वहाँ जाकर पद्मोत्तर राजा के सामने द्रौपदी के रूप की खूब प्रशंसा की। राजा द्रौपदी को पाने के लिए लालायित हो उठा। राजा ने देवता से सहायता मांगी। देव ने कहा कि द्रौपदी महासती स्त्री है। यह कार्य मुझसे नहीं होगा आप दूसरा कार्य कहिए। अत्यधिक आग्रह करने से देव ने द्रौपदी को पलंग सहित जम्बूद्वीप से घातकी खण्ड में लाकर उसे सौंप दिया।
प्रातःकाल होते ही पाण्डवों को द्रौपदी दिखाई नहीं दी। आस-पास सभी स्थानों
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