Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 5
________________ रास्ववामां बावेल छे. या संस्थानो उद्देश पोताना कोई पण प्रकाशनमाथी नको नहि लेवानो होवाथी पडतर किंमत राखवा छतां पण लेजर कागल तथा सारी छपाईना अंगे खर्च वधु आववाथी, राखवामां बावेली किंमत वाचकजनोने कदाच वधु लागे तो क्षन्तव्य गणशे एम अमे आशा राखीये छीये. ___सदरहु ग्रन्थना सम्पादक तथा संशोधन- कार्य बन्ने पूज्य पंन्यासजी महाराजाओए करी आपी ज्ञानप्रचारना अमारा आ कार्यमा जे मदद करी छे ते बदल आ संस्था तेओश्रीनो घणो आभार माने छे अने एमना तरफथी आवी मदद अमारी संस्थाने वधुने वधु मळे एम अमे इच्छीए छीए, ____ गोपीपुरा-सुरत. लि. श्री विजयदानसूरीश्वरजी जैन ग्रन्थमाला वि. सं. २०१८ ज्येष्ठ सुद २ ) व्यवस्थापक-मास्तर हीरालाल रणछोडमाई %%%%ASE

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