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भूमिका
(५) धर्मकीतिका घौद्ध न्यायमें स्थान । धर्मकीर्तिके बौद्धन्यायमें स्थानको लिखनेसे पूर्व यह प्रश्न उपस्थित होता है कि धर्मकीर्तिका बौद्ध दर्शनमें क्या स्थान है ? किन्तु उसके बनाये हुए किसी भी दार्शनिक ग्रन्थके सामने न होनेसे हम इस विषयपर लिखने में असमर्थ हैं। क्योंकि केवल न्यायके ग्रन्थ के आधारपर दार्शनिक विषयकी समालोचना करना हम योग्य नहीं समझते। - यह पीछे पुगट किया जा चुका है कि आचार्य दिग्नाग आधुनिक बौद्ध न्यायके जन्मदाता थे। किन्तु गौतम न्यायसूत्रके वात्स्यायन भाष्यकी टीका न्यायवार्तिकके रचयिता उद्योतकरने अपने ग्रन्थ में उनकी खूब समालोचनाकी। उस समय इस समालोचनासे ब्राह्मणोंका प्रभाव बहुत कुछ बढ़ गया और बौद्धोका घट गया। दिग्नागसे धर्मकीर्ति तकके बीचमें कोई भी ऐसा बौद्ध नैयायिक नहीं हुआ जो उस उखड़ी हुई पतिष्ठाको जमाता। किन्तु धर्मकीर्तिने स्थान २ पर शास्त्रार्थ करके बौद्धमतका इतना प्रचार किया कि उसके पीछेके पायः सभी दर्शनोंके न्यायवालोंने उसकी समालोचना करनेमें ही अपना गौरव समझा । इन्होंने न्यायवार्तिककी भी समालोचना खूब की थी। इनके पश्चात् बौद्ध नैयायिकोंमें ऐसा दमदार कोई नैयायिक नहीं हुआ। इस वास्ते जबकि हम दिग्नागको आधुनिक न्यायका जन्मदाता कहते हैं तो धर्मकीर्तिको बौद्धन्यायका उद्धारक कहना बहुत योग्य होगा। .. (६) धर्मकीर्ति कृत दिग्नागका खंडन । • प्रमाणवार्तिककारिकाके बननेके वर्णनमें कहा जा चुका है कि धर्मकीर्तिने दिग्नागके ग्रन्थमे उसकी गलतियां पकड़ीं। यद्यपि हमारे सामने प्रमाणवार्तिककारिका उपस्थित नहीं है तथापि न्यायविन्दु टीकासे दिग्नागसे धर्मकीर्तिका मतभेद स्पष्ट पुगट हो जाता है । यद्यपि डाक्टर सतीशचन्ड विद्याभूषणने इस विषयपर भी काफी लिखा है किन्तु इस स्थलपर उस विषयमें न लिखना भी अनुचित होगा अतएव हम यहां पर वही विषय डाक्टर साहिबसे अभिन्न सम्मति रखते हुए लिखते हैं
इष्टविघातकृत् विरुद्ध । हेतुके साध्यके विरुद्ध होनेको दिग्नाग और धर्मकीर्ति दोनोंने ही हेत्वाभास माना है। किन्तु दिग्नागने अपने न्यायप्रवेशमें हेतुके