Book Title: Nyayabindu
Author(s): Dharmottaracharya
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Granthmala

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Page 223
________________ न्यायबिन्दु अत्र वैधम्र्योदाहरणम् । ये ग्राह्यवचना न ते रागादिमन्तस्तद्यथा गौतमादयो धर्मशास्त्राणां प्रणेतार इति गौतमादिभ्यो रागादिमत्त्वस्य साधनधर्मस्य व्याहृतिः। उसमें वैधम्र्योदाहरण जो ग्राह्यवचन वाले होते हैं वह रागादिमान् नहीं होते। जैसेगौतम आदि धर्मशास्त्रोंके बनानेवाले । इस प्रकार गौतम आदि से रागादिमत्व साधनधर्म की व्यावृत्ति की । संदिग्धा संदिग्धोभयव्यतिरेकः । ३३ यथा वीतरागाः कपिलादयः परिग्रहाग्रह योगादिति । संदिग्धासंदिग्धोभयव्यतिरेक जैसे - कपिल आदि वीतराग नहीं है; क्योंकि उनमें परिग्रह और आग्रह है । अत्र वैधर्म्येणोदाहरणम् । यो वीतरागो न तस्य परिग्रहाग्रहो यथा - ऋषभादेरिति । ऋषभादेरवीतरागत्वं परिग्रहयोगयोः साध्यसा - धनधर्मयोः संदिग्धो व्यतिरेकः । इसमें वैधम्यदारण जो वीतराग होता है उसके परिग्रह और आग्रह नहीं होता । जैसे - ऋषभ आदि । ऋषभ आदि के साध्यधर्म अवीतरागत्व और साधनधर्म परिग्रह और आग्रहके योगमें व्यतिरेक संदिग्ध है । अव्यतिरेको यथाऽवीतरागो वक्तृत्वात् । अव्यतिरेक वक्ता होनेसे वीतराग नहीं है । वैधम्र्योदाहरणं यत्र वीतरागत्वं नास्ति स वक्ता । यथोपलखण्ड इति । यद्यप्युपलखण्डादुभयं व्याष्टत्तया सर्वो वीतरागो न वक्तेति व्याप्त्या व्यतिरेकासिद्धेरव्यतिरेकः । वैधयोदाहरण जिसमें वीतरागता होती है वह वक्ता नहीं होता। जैसे -- पाषाणखण्ड । यद्यपि पाषाणखण्डसे दोनों की व्यावृति हो जानेसे 'सभी "वीतराग वक्ता नहीं होते' इस व्याप्तिसे व्यतिरेकके सिद्ध न होनेसे अव्यतिरेक है ।

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