Book Title: Nyayabindu
Author(s): Dharmottaracharya
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Granthmala

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Page 222
________________ भाषाटीका सहित इति साधर्म्येण । यह साधर्म्य से [ नौ दृष्टान्त दोष कह दिए । ] वैधर्म्येणापि परमाणुवत्कर्मवदाकाशवदिति साध्याद्यव्यतिरेकिणः। वैसे भी 'परमाणु, कर्म और आकाशके समान' ये साध्याव्यतिरेकि आदि दृष्टान्त दोषों के उदाहरण हैं । ( इसमें परमाणु साध्याव्यतिरेकि, कर्म साधनाव्यतिरेकि और आकाश उभयाव्यतिरेकि दृष्टान्त हैं । ) तथा संदिग्धसाध्यव्यतिरेकादयः । तथा संदिग्धसाध्यव्यतिरेक आदियथाज्ञाः कपिलादयोऽनाप्ता वा । अविद्यमान सर्वज्ञतासतालिङ्गभूतप्रमाणातिशयशासनत्वादिति । जैसे -- कपिल आदि असर्वज्ञ अथवा अनाप्त हैं, क्योंकि उनमें सज्ञता का लिङ्गभूत प्रमाणातिशयशासन नहीं है । अत्र वैधम्र्योदाहरणं यः सर्वज्ञ आप्तो वास ज्योतिर्ज्ञानादिकमुपदिष्टवान् । ३२ यद्यथा । ऋषभवर्धमानादिरिति । इस प्रमाण वैधर्म्य उदाहरण : जो सर्वज्ञ या आप्त होता है वह ज्योतिर्ज्ञात आदि का उपदेश देता है। जैसे—ऋषभ और वर्धमान आदि [ जैन तीर्थंकर । ] तत्रासर्वज्ञतानातयोः साध्यधर्मयोः संदिग्धो व्यतिरेकः । क्योंकि साध्यधर्म असर्वज्ञता और अनाप्तता में व्यतिरेक सन्दिध है। संदिग्ध साधनव्यतिरेकः । यथा- न त्रयीविदा ब्राह्मणेन ग्राह्यवचनः कश्चित्पुरुषो रामादिमत्वादिति । सन्दिन्धसाधन व्यतिरेक कोई पुरुष त्रयीवित ( जो ऋक्, यजुः, और साम इन तीनों वेदों को जानता है ब्राह्मणसे ग्राह्यवचनवाला (जिसका वचन ग्रहण किये जाने योग्य हो ) नहीं हैं। क्योंकि पुरुष राग आदि से युक्त होता है । १. पी० [सं० में 'सर्वज्ञा' पाठ है, जो अशुद्ध है ।

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