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भाषार्टीका सहित सिद्ध न कर सकनेके कारण से हेतु का एकदोष हो जाताहै । जैसे'अग्नि उष्ण है; क्योंकि वह उष्ण है' में 'उष्णत्व' हेतु प्रतिज्ञार्थंकदेशहेतु है।) वस्तुतस्तयोस्तादात्म्यात्तनिष्पत्तावनिष्पमस्य तत्स्वभा
वत्वाभावाद् व्यभिचारसंभवाच । क्योंकि वास्तवमेंसाध्य और साधन का तादात्म्य होता है। और जोतनिष्पत्तीमें अनिष्पन्न है (जो जिसका नियमसे कारण नहीं होतो वह तनिष्पत्ति(उसकी उत्पत्ति) में अनिष्पन्न (उत्पन्न न होने वालो) होता है) पहाउस स्वभावधाला नहीं होता और उसमें व्यभिचार भी आता है।
कार्यहेतोरपि प्रयोगः । यत्र धृमस्तत्रानिर्यथा महान. .. सादावस्ति चह धूम इति । इहापि सिद्ध एव । कार्यहेतु का प्रयोग
जहाँपर धूम होता है वहां अग्नि होती है ; जैसे पाकशाला आदिमें। उसी प्रकार यहाँ भी धूम है। इस वासते यहाँ भी अग्नि सिद्ध ही है।
कार्यकारणभावे कारण साध्ये कार्यहेतुर्वक्तव्यः । कार्यकारणभाव में कारण के साध्य होनेपर, कार्य को हेतु कहना चाहिये।
वैधय॑वतः प्रयोगो यत्सदुपलब्धिलक्षणमाप्तं तदुपलभ्यत एन । यथा नीलादिविशेषः । न चैवमिहोपलब्धिलक्षणप्राप्तस्य सत उपाधघंटस्येत्यनुपलब्धिप्रयोगः । वैधर्म्यवत् का प्रयोग__ जो सत् और उपब्धिलक्षणप्राप्त होता है वह अवश्य उपलब्ध होता है। जैसे-जील आदि विशेषां उसी प्रकार यहाँ उपलब्धिलक्षणप्राप्त सत् घट की उपलब्धि नहीं है । अतएव यह अनुपलब्धि प्रयोग है। __ असत्यनित्यत्वे नास्ति सत्वमुत्पत्तिमचं कृनकत्वं वा।
असंश्च शब्द उत्पत्तिमान्कृतको देति स्वभावहेतोः प्रयोगः । [स्वभावहेतुके वैधयंप्रयोगको कहते हैं-] असत्यग्नौ न भवत्येव धूमोऽत्र चास्तीति कार्यहतोः प्रयोगः ।
अग्निके न होने पर धूमभी नहीं होता,उसीप्रकार यहां है । (अर्थात् अग्निके न होनेसे धूम नहीं है )। यह कार्यहेतु का प्रयोग है। .