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न्यायविन्दु तस्माभिवृत्तिवचनमाक्षितपतिबन्धोपदर्शनमेव भवति । [साधनके साध्यमें प्रतिबद्ध होनेसे साध्यकी निवृत्ति होनेपर साधनकी निवृत्ति भी हो जाती है ] अतएव [ साध्यकी निवृत्तिमें साधनकी ] निवृत्तिका कहना उस प्रतिबन्धका दिखलाना ही हो जाता है। ___ यच्च प्रतिबन्धोपदर्शनं तदेवान्वयवचनमित्येकेनापि वाक्ये. नान्वयमुखेन व्यतिरेकमुखेन वा प्रयुक्तेन सपक्षासपक्षयोर्लिङ्गस्य सदसवख्यापनं कृतं भवतीति नावश्यवाक्यद्वयप्रयोगः ।
और वह प्रतिबन्धोपदर्शन ही (प्रतिबन्ध का दिखलाना ही) अन्वयवचन है। इस प्रकार प्रयोग किये हुए एक ही अन्वयमुख अथवा व्यतिरेकमुख वाक्यसे सपक्षमें लिङ्गका सत्त्व अथवा असत्त्व कहा जाता है, इस प्रकार दो वाक्योंके प्रयोगकी कोई आवश्यकता नहीं रहती। अनुपलब्धावपि यत्सदुपलब्धिलक्षणप्राप्तं तदुपलभ्यत एवेत्युक्तेऽ
नुपलभ्यमानं तादृशमसदिति प्रतीतेरन्वयसिद्धिः । अनुपलब्धिमें भी 'जो उपलब्धिलक्षणप्राप्त है वह उपलब्ध होता ही हैं' ऐसा कहने पर उसी प्रकारका 'अनुपलभ्यमान ( न मिलनेवाला) पदार्थ असत् है' ऐसी प्रतीति हो जानेसे अन्वयकी सिद्धि हो जाती है।
द्वयोरप्यनयोः प्रयोगेऽवश्यं पक्षनिर्देशः। . इन दोनों प्रयोगोंमें पक्षका निर्देश (कहना ) अवश्य होना चाहिये। . यस्मात्साधवत्लयोमेऽपि यदुपलब्धिलक्षणप्राप्त
सन्नोपभ्यते सोऽसद्यवहारविषयः । क्योंकि साधर्म्यवत् प्रयोगमें भी जो उपलब्धिलक्षणप्राप्त होता हुआ भी उपलब्ध नहीं होता वह असत् व्यवहारका विषय है। नोपलभ्यते चात्रोपलब्धिलक्षणप्राप्तो घट इत्युक्त
सामर्थ्यादेव नेह घट इति भवति । 'यहां उपलब्धिलक्षणप्राप्त घट नहीं है' ऐसा कहनेपर 'यहां घट नहीं है' यह सामर्थ्यसे ही आ जाता है ।