Book Title: Nyayabindu
Author(s): Dharmottaracharya
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Granthmala

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Page 210
________________ भाषाटीका सहित अनुमाननिराकृतो यथा - नित्यः शब्द इति । अनुमाननिराकृतजैसे - शब्द नित्य है । प्रतीतिनिराकृतो यथा- अचन्द्रः शशीति । प्रतीतिनिराकृत जैसे शशी चन्द्रशब्दका वाच्य नहीं है । स्ववचननिराकृतो यथा - नानुमानं प्रमाणम् । स्ववचन निराकृत जैसे- अनुमान प्रमाण नहीं है । एतदेव तु यद्य सत्यार्थमन्यान्यसत्यार्थानि न दर्शितानि भवन्ति । यदि इसीको असत्यार्थ कहें तो अन्य थचन असत्यार्थ नहीं कहे जा सकते । इति चत्वारः पक्षाभासा निराकृता भवन्ति । इस प्रकार चारों पक्षाभास निराकरण किये जाते हैं । सिद्धस्यासिद्धस्यापि साधनत्वेनाभिमतस्य स्वयं वादिना तदा साधयितुमनिष्टस्योक्तमात्रस्य निराकृतस्य च विपर्ययेण साध्यस्तेनैव स्वरूपेणाभिमतो वादिन इष्टोऽनिराकृतः पक्ष इति पक्षलक्षणमनवद्यं दर्शितं भवति । 3 जो पदार्थ सिद्ध (विपरीत हेतुसे सिद्ध किया हुआ भी साध्य हो सकता है ) अथवा असिद्ध भी साधनरूपसे माना गया हो, तथा स्वयं वादीको अनिष्ट न हो और उपरोक्त प्रत्यक्ष आदि निराकृतों से विपरीत हो तथा वादीके द्वारा साध्य माना गया हो, तथा जो इट और अनिराकृत हो वह पक्ष होता है । यह पक्षका निर्दोष लक्षण है । त्रिरूपलिङ्गाख्यानं परार्थानुमानमित्युक्तम् । इस प्रकार त्रिरूपलिङ्गका अभिधान रूप परार्थानुमान कहा गया । तत्र त्रयाणां रूपाणामेकस्यापि रूपस्यानुक्तौ साधनाभास | उक्तावप्यसिद्धौ संदेहे वो । ९. पीटर्सन संस्करण का 'निराकृतः ' पाठ अशुद्ध है । २. पी० सं० में यहाँ विराम न होने से हेत्वाभास सामान्य और असिद्ध हेत्वाभास का लक्षण निकालने में बड़ी कठिनता पड़ती है ।

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