Book Title: Nyayabindu
Author(s): Dharmottaracharya
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ भ्यायविन्दु सन्नुत्पत्तिमाकृतको वा शब्द इति पक्षधर्मोपदर्शनम् । अथवा शब्द सत् उत्पत्तिमान् और कृतक है । इस प्रकार पक्षधर्म को दिखला दिया। ( धमों को पक्ष भी कहते हैं । यहाँ धर्माशब्दमें पक्षके धर्म सत्त्व उत्पत्तिमत्त्व और कृतकत्व दिखलाये हैं। उनमें से सत्व वस्तु से बिलकुल अप्रथक होने से शुद्ध विशेषण है। उत्पत्तिमत्व से प्रगट होता है कि वस्तुमें उसके अन्दरही अन्दर कुछ परिवर्तन हुआ है । अतएव यह अन्यतिरिक्तविशेष ग है। कृतकत्वसे प्रगट होता है कि करने वाला स्वयं वस्तुसे भिन्न है । अतः यह व्यतिरिक्त विशेषण है।) (शङ्का ) यह स्वभावहेतु सिद्धसम्बन्ध स्वभावके साध्यमें प्रयोग किये जाने चाहिये अथवा असिद्धसम्बन्धके । (उत्तर ) सिद्धसम्बन्ध प्रयोग किये जाने चाहिये। (यही दिखलाते हुए कहते हैं) सर्व एते साधनधर्मा यथास्वं प्रमाणः सिद्धसाधनध ममात्रानुबन्ध एव साध्यधर्मेऽवगनव्याः । यह स्वभावहेतु ( साधनधर्म ) निश्चितसाधनधर्ममात्रानुवन्धिसाधनधर्म में ही प्रयोग किये जाने चाहिये । अन्यत्र नहीं। (गमक होनेसे साधन और पराश्रित होनेसे धर्म कहा जाता है। साधन धर्ममात्रसे अभिाशय केवल साधनधर्मसे ही है। अनुबन्ध अन्वयव्याप्तिको कहते हैं। जैसे-धूम पावकानुबन्धि (अनुबन्धि-अनुबन्धवाला। है। जो अपने अनुरूप प्रमाणोसे सिद्ध हो उसको यहां निश्चित कहा है। अतएव स्वभावहेतुका प्रयोग ऐसे निश्चितसाधनधर्ममात्रको अनुबन्ध करने वाले साधनधर्म में ही किया जाना चाहिये। ) तत्स्वभावत्वात्स्वभावस्य च हेतुत्वात् । क्यिोंकि जो साध्यधर्म साधनधर्ममात्रानुबन्धि है ] वह ही उस साधनधर्मका स्वभाव है। और स्वभावही हेतु है। यद्यपि साध्यधर्म साधनका स्वभाव होता है, तथा साधन हेतु होता है तथापि साधन प्रतिज्ञार्थंकदेशहेतु नहीं हैं। ] (धर्म और धर्मी के समुदायको प्रतिज्ञा कहते हैं। एकदेश एक भाग को कहते हैं । यदि प्रतिज्ञा (धर्म और धर्मी ) के ही किसी भाग को ( धर्म या धर्मी को) हेतु बनाया जावेगा तो यह प्रयोग साध्यको १. पीटर्मन मस्करण में यह भी विरम न देकर इसके मारले. या में भला दिया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230