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भूमिका
- शब्दनित्य है क्योंकि वह श्रव्य (बुनने योग्य ) है।
उपरोक्त मामलों (Cases) में काममें लाये हुए दोनों हेतु क्रमसे वैशेषिक और मीमांसाके सिद्धान्तके पुष्ट करनेके कारणसे उन २ दर्शनकारों द्वारा ठीक माने जाते हैं। किन्तु दो विरुद्ध परिणामोपर लेजानेसे वह अनिश्चित ( Uncertain ) हैं। और इसी वासते वह हेत्वाभास है। ... धर्मकीर्तिने न्यायविन्दुमे विरुद्धाव्यभिचारी हेत्वाभासका निषेध (न्या पृ० १११-११४ भाषा० पृ० २७-२९) किया है । इसका कारण उन्होंने यह दिया है कि यह न तो अनुमानके विषयमें उठता ही है और न शास्त्र ही इसका आधार है। हेतुका साध्यमें स्वभाव, कार्य या अनुपलब्धि रूपमें रहना आवश्यक है। और उसके द्वारा ठीक परिणाम निकलना चाहिये। . परस्परविरोधी दो परिणाम ऐसे हेतुओंसे पुष्ट नहीं हो सकते जो ठीक ( Valid ) हैं। परस्पर विरुद्ध दो परिणामोंके सिद्ध करने में दो शास्त्र उसी प्रकार सहायता नहीं कर सकते हैं जिस प्रकार एक शास्त्र प्रत्यक्ष और अनुमानको पुष्ट नहीं कर सकता ( Cannot over-ride ) और वह केवल बुद्धिके न पहुँचने योग्य विषयोंमें ही प्रमाण होता है । इस वासते विरुद्धाव्यभिचारी असंभव है।
दृष्टान्तका कार्य। दिग्नागके विरोध धर्मकीर्ति ( त्रिरूपो हेतुरुक्तः । तावतैव अर्थ प्रतीतिरिति न प्रथग दृष्टान्तो नाम साधनायवः कश्चित् । तेनास्य लक्षणं पृथग [न] उच्यते गतार्थत्वात् । (न्या० पृ० ११७, ११८ भाषा० पृ. २९) सम्भवतः 'न' भूलसे छूट गया है। तिब्बी अनुवादमें 'न' मिलता है। ) कहता है कि 'दृष्टान्त' नामका कोई साधनका अवयव नहीं है। क्योंकि इसका हेतुमे अन्तर्भावहो जाता है। जैसे
पर्वतमें अग्नि है क्योंकि वहाँ धूम है । जैसे पाकशाला में। । . इस वाक्यमें दृष्टान्त पाकशाला और उसी प्रकारकी अन्य वस्तुएं हेतु में ही आजाती हैं। अतएव 'दृष्टान्त' पाकशालाको प्रथक कहना व्यर्थ है। धर्मकीर्ति कहता है कि इतना होने पर भी दृष्टान्त का यह मूल्य है ही (.....................उक्तम् अभेदेन...पुनर्विशेषेण दर्शनीयावुक्तौ।) कि यह हेतुके द्वारा साधारण रूपसे कथन लिये हुए को विशेषरूपसे बतला देता है । इस प्रकार साधारण कथन 'सब धूम वाली वस्तु अग्नि वाली होती हैं' को विशेष दृष्टान्त