Book Title: Niyam Sara
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 15
________________ Foreword appreciate this commentary. A sample each of the prose and stanza are reproduced below: किच्च अस्य खलु निखिलागमार्थसार्थप्रतिपादनसमर्थस्य नियमशब्दसंसूचितविशुद्धमोक्षमार्गस्य अंचितपंचास्तिकायपरिसनाथस्य संचितपंचाचारप्रपंचस्य षड्द्रव्यविचित्रस्य सप्ततत्त्वनवपदार्थगर्भीकृतस्य पंचभावप्रपंचप्रतिपादनपरायणस्य निश्चयप्रतिक्रमणप्रत्याख्यानप्रायश्चित्तपरमालोचनानियमव्युत्सर्गप्रभृतिसकलपरमार्थक्रियाकांडाडंबरसमृद्धस्य उपयोगत्रयविशालास्य परमेश्वरस्य शास्त्रस्य द्विविधं किल तात्पर्य, सूत्रतात्पर्य शास्त्रतात्पर्यं चेति। सूत्रतात्पर्य । पद्योपन्यासेन प्रतिसूत्रमेव प्रतिपादितम्, शास्त्रतात्पर्यं त्विदमुपदर्शनेन्। भागवतं शास्त्रमिदं निर्वाणसुन्दरीसमुद्भवपरमवीतरागात्मकनिाबाधनिरन्तरानंगपरमानन्दप्रदं निरतिशयनित्यशुद्धनिरंजननिजकारणपरमात्मभावनाकारणं समस्तनयनिचयांचितं पंचमगतिहेतुभूतं पंचेन्द्रियप्रसरवर्जितगात्रमात्रपरिग्रहण निर्मितमिदं ये खलु निश्चयव्यवहारनययोरविरोधेन जानन्ति ते खलु महान्तः समस्ताध्यात्मशास्त्रहृदयवेदिनः परमानन्दवीतरागसुखाभिलाषिणः परित्यक्तबाह्याभ्यन्तरचतुर्विंशतिपरिग्रहप्रपंचाः त्रिकालनिरुपाधिस्वरूपनिरतनिजकारणपरमात्मस्वरूपश्रद्धानपरिज्ञानाचरणात्मकभेदोपचारकल्पनानिरपेक्षस्वस्थरत्नत्रयपरायणाः सन्तः शब्दब्रह्मफलस्य शाश्वतसुखस्य भोक्तारो भवन्तीति। जयति नियमसारस्तत्फलं चोत्तमानां हृदयसरसिजाते निर्वृतेः कारणत्वात् । प्रवचनकृतभक्त्या सूत्रकृद्भिः कृतो यः स खलु निखिलभव्यश्रेणिनिर्वाणमार्गः ॥३०५॥ In this stanza, the commentator sums up the sublime purpose of this book as well as his commentary that the worthy soul would, for sure, use these instructions to climb the ladder of soul evolution to the ultimate nirvana. Several Editions of 'Niyamasāra' The devotion of śramanas and laities has enabled preservation of such ancient scriptures as 'Niyamasāra'. It is beyond our imagination as to (xiii)

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