Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 9
________________ 'चंदूभाई' से दोष होते हैं और खुद को नहीं अच्छे लगते तो वह 'दोष देखा' कहलाता है और दिखा वह चला जाता है। जीवन खुद के ही पाप-पुण्य की गुनहगारी का परिणाम है। फल बरसे वह पुण्य का और पत्थर पड़े, वह पाप का परिणाम है! क़ीमत है समता भाव से भुगत लेने की। अधिकतर उलझनें वाणी से पड़ती हैं। वहाँ जागृति रखकर मौन रखकर हल ला सकते हैं। सम्यक् दृष्टिवाले को नये दोष भरते नहीं हैं और पुराने खाली होते हैं। ज्ञान प्राप्ति के बाद भी कषाय हो जाते हैं, पर उसका तुरन्त पता चलता है और खुद उससे अलग रहता है। अक्रमविज्ञानी ने तो ज्ञान देकर पच्चीसों प्रकार के मोह का नाश कर दिया है। अच्छी आदतें-बुरी आदतें, दोनों को भ्रांति कहकर छडवाया है सभी से। शुद्ध उपयोगी को कोई कर्म छूता नहीं है। बुद्धि हमेशा समाधान खोजती है, स्थिरता खोजती है। बुद्धि स्थिर कब होती है? दूसरों के दोष देखे, तब बुद्धि स्थिर होती है, या फिर खद के दोष देखे, तब भी बुद्धि स्थिर होती है। अज्ञानता में दूसरों के ही दोष देखती है, खुद के दिखते ही नहीं। बुद्धि स्थिर नहीं होती इसलिए डाँवाडोल होती रहती है। फिर सारा अंत:करण हिला देती है, हुल्लड़ मचा देती है। फिर बुद्धि, दूसरों के दोष दिखाए, तब खुद सच्ची सिद्ध होकर स्थिर होती है ! फिर हुल्लड़ शांत हो जाता है! नहीं तो विचारों का घमासान चलता ही रहता है और इस प्रकार संसार में डखा (घोटाला, बखेड़ा, गड़बड़) हो रहा है। ऐसी बारीक बात कौन-से शास्त्र में मिले?! जगत् का लेखा-जोखा किसी शास्त्र में मिले ऐसा नहीं है, वह तो ज्ञानी के पास ही मिलता है। सामनेवाले के दोष दिखें, वही संसार की अधिकरण क्रिया है ! मोक्ष में जानेवाला खुद की भूलें देखता रहता है और संसार में भटकनेवाले दूसरों की भूलें देखते रहते हैं! अभिप्राय रखने से दृष्टि दोषित हो जाती है। प्रतिक्रमण से अभिप्राय टूटते हैं और नया मन बनता नहीं है। __ आत्मदृष्टि होने के बाद.... देहाध्यास छूटे और आत्मा का अध्यास बैठे, उसके बाद निजदोष ही दिखते हैं। कुछ दोष बर्फ के रूप में जमे हुए होते हैं, वे जल्दी किस तरह जाएँ? अनेकों परतवाले होते हैं, इसलिए धीरे-धीरे जाते हैं। जैसे-जैसे दोष दिखाई दें, वैसे-वैसे परतें उखड़ती जाती हैं। जैसे प्याज की परतें होती हैं, वैसे बहुत चिकने दोषों के बहुत प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। 15 सामनेवाले की कौन-सी भूल निकाल सकते हैं? जो भूल उसे दिखती नहीं हो, वह। और किस प्रकार निकालनी चाहिए? सामनेवाले को भूल निकालनेवाला उपकारी दिखे तब निकालनी चाहिए। कढ़ी खारी है' कहकर क्लेश नहीं करना चाहिए। घरवाले सभी निर्दोष दिखें और खुद के ही दोष दिखें तब सच्चे प्रतिक्रमण होते हैं। प्रतिक्रमण कब तक करने चाहिए? जिसके प्रति मन बिगड़ता रहता हो, याद आती रहती हो, तब तक। जब तक हमारा अटेकिंग नेचर होगा, तब तक मार पड़ेगी। हमसे चाहे कैसा भी व्यक्ति टकराने आए, तब भी हमें टकराव टालना चाहिए, हमें खिसक जाना चाहिए। खुद कर्ता नहीं है पर सामनेवाले को कर्त्ता देखता है, वह खुद ही कर्ता होने के बराबर है! सामनेवाले को किंचित् मात्र कर्ता देखा कि खुद 16Page Navigation
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