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निजदोष दर्शन से... निर्दोष! कहे, 'बड़े ज्ञानी बनकर बैठे हैं, हुक्का तो छूटता नहीं।' ऐसा सब बोले न, तब मैं कहूँ कि, 'महाराज, यह इतनी हमारी खली कमजोरी है, वह मैं जानता हूँ। आपने तो आज जाना, मैं तो पहले से ही जानता हूँ।' यदि मैं ऐसा कहूँ कि हम ज्ञानियों को कुछ नहीं छूता, तो वह हुक्का अंदर समझ जाएगा कि यहाँ बीस वर्ष का आयुष्य अपना बढ़ गया! क्योंकि मालिक अच्छे हैं, चाहे जो करके रक्षण करते हैं। वैसा मैं कच्चा नहीं हूँ। रक्षण कभी भी नहीं किया। लोग रक्षण करते हैं या नहीं करते?
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निजदोष दर्शन से... निर्दोष! यह तो पोल चलती जाती है। ये लोग जवाब दे नहीं सकते हैं इसलिए फिर ये सब पोल मारने जाते हैं। पर मेरे जैसे तो जवाब देते हैं न? तुरन्त जवाब देते हैं। बीरबल जैसा तुरन्त हाजिर जवाब।
दोष स्वीकारो, उपकार मानकर
प्रश्नकर्ता : हाँ करते हैं, बहुत जोरदार करते हैं।
हममें आड़ाई जरा भी नहीं होती। कोई हमें हमारी भूल बताए तो हम तुरन्त ही एक्सेप्ट (स्वीकार) कर लेते हैं। कोई कहे कि यह आपकी भूल है, तो हम कहते हैं कि हाँ भाई, यह तूने हमें भूल बताई तो तेरा उपकार। हम तो जानें कि जो भूल उसने बता दी, उसके लिए उसका उपकार । बाक़ी दोष है या नहीं है, वह पता लगाने जाना नहीं है। उन्हें दिखता है, इसलिए दोष है ही। मेरे कोट के पीछे लिखा हो कि, 'दादा चोर हैं।' लोग फिर पीछे बोलेंगे या नहीं बोलेंगे? किसलिए 'दादा चोर हैं' ऐसा बोलते है? क्योंकि मेरे पीछे लिखा है, बोर्ड लगाया है न? फिर जब हम देखें, तब पता चले कि हाँ, पीछे बोर्ड लगाया है। भले ही दूसरा कोई लिख गया होगा, पर इन सभी को पढ़ना तो आता है न?
प्रश्नकर्ता : दादा ने आप्तवाणी में ऐसा लिखा है कि, 'दादा चोर हैं,' ऐसा कोई लिख दे तो महान उपकार मानना चाहिए। ऐसा लिखा है न?
दादाश्री : एक साहब नसवार सूंघते थे, ऐसे करके ! मैंने कहा, 'साहब, यह नसवार ज़रूरी है आपके लिए?' तब उन्होंने कहा, 'नसवार में कोई हर्ज नहीं है।' मुझे हुआ, इन साहब को मालूम ही नहीं है कि इस नसवार का अंदर से आयुष्य बढ़ा रहे हैं! क्योंकि आयुष्य यानी क्या? कोई भी संयोग जो है, वह वियोग का नक्की होने के बाद ही वह संयोग मिलता है। यह तो जो नक्की हो चुका है, उसका फिर आयुष्य बढ़ाते हैं ऐसे! क्योंकि जीवित मनुष्य, चाहे उतना कम-ज्यादा करवाए इसलिए क्या हो फिर?! ये सभी आयुष्य बढ़ा रहे हैं, हर एक बात में उसका रक्षण करते हैं कि, 'कोई हर्ज नहीं, हमें तो छूता ही नहीं।' गलत चीज का रक्षण करना तो भयंकर गुनाह है।
प्रश्नकर्ता : और शुष्क अध्यात्म में उतर गए हों, तो वे ऐसा कहते हैं कि आत्मा को कुछ छूता नहीं है, यह तो पुद्गल को है सब।।
दादाश्री : ऐसे तो सब बहुत हैं यहाँ। गोल-गोल, गोल-गोल घुमाते हैं वे। उनका ही माल, वह शुष्क कहलाता है।
फिर सब सुनने के बाद मैं कहूँ कि भगवान ने कहा है कि इतने लक्षण चाहिए, मृदुता, ऋजुता, क्षमा! यह तो मृदुता दिखती नहीं, ऋजुता दिखती नहीं, ऐसी तो अकड़ है!
अकड़ और आत्मा बहुत दूर हैं।
दादाश्री : हाँ, लिखा है। प्रश्नकर्ता : मतलब, वह किस तरह?
दादाश्री : हाँ, उपकार नहीं मानो, तो उसमें पूरा आपका अहंकार खड़ा होकर द्वेष में परिणमित होगा। उसे क्या नुकसान होनेवाला है? उसके बाप का क्या जानेवाला है? वह तो दिवालिया होकर खड़ा रहेगा और आपने दिवाला निकलवाया। इसलिए आपको कहना चाहिए, 'भाई, तेरा उपकार है!' हमारा दिवाला नहीं निकले इसलिए। वह तो दिवालिया होकर खड़ा ही रहेगा, उसे क्या? उसे दुनिया की पड़ी नहीं है। वह तो बोलेगा। गैरजिम्मेदारीवाला वाक्य कौन बोलता है? जिसे खुद की जिम्मेदारी का भान