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निजदोष दर्शन से... निर्दोष! डाली? ऊपर से केस बनता है कि आपने यहाँ क्यों खोद डाला? इसलिए फिर से भर दो और फिर इसके ऊपर पानी डालकर और समतल करवा
दो।
मतलब ये सब लोग जो करते हैं न, वे उलटी जगह पर खोदते हैं। उसके बजाय नहीं खोदते हों और किसीको कहते हों कि भाई, मेरा कुछ हल निकाल दो तो कोई हल निकाल दे। जो छूट गया है, वह छुड़वा देगा। वह बँधा हुआ मनुष्य, वही डुबकी खा रहा हो, 'बचाओ' कहता हो, 'तो मुए, तू बचाओ-बचाओ कहता है, तू क्या मुझे बचानेवाला है फिर?'
प्रश्नकर्ता : इतना समय जिसकी शरण में गए हल निकालने, वहाँ वापिस डूब गए, जिस डॉक्टर की दवाई ली उसने दर्द बढ़ाया, कम नहीं किया।
दादाश्री : वे डॉक्टर ठीक से पढ़े हुए नहीं थे। वे डुबकी खा रहे थे और जो डॉक्टर ऐसा कहे, 'नहीं, हम तर गए हैं, तू आ' तो हम समझें कि वे खुद कह रहे हैं न!
निजदोष दर्शन से... निर्दोष! है। अंदर तो अपार भूलें हैं। पर मात्र बड़ी-बड़ी पच्चीसेक जितनी भूलें मिटाए न तो छब्बीसवीं अपने आप जाने लगेगी। कुछ लोग तो भल को जानते हैं, फिर भी खुद के अहंकार को लेकर उसे भल नहीं कहते। यह कैसा है? एक ही भूल अनंत जन्म बिगाड डालती है, यह तो पसाए ही नहीं। क्योंकि नियाणां (अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक वस्तु की कामना करना) मोक्ष का किया था, वह भी नियाणां पूरा-पूरा नहीं किया था। इसलिए तो ऐसा हुआ न ! दादा के पास आना पड़ा न?
तब भूल मिटाई कहलाती है एक-एक जन्म में एक भूल मिटाई होती तो भी मोक्ष स्वरूप हो जाते। पर यह तो एक भूल मिटाने जाते नहीं, पाँच भूले बढ़ाकर आते हैं। यह बाहर सब सुंदर और भीतर सब क्लेश का पार नहीं है ! इसे भूल मिटाई कैसे कहें? आपका कोई ऊपरी ही नहीं है। पर भल बतानेवाला चाहिए। भूलों को मिटाओ, पर खुद की भूल खुद को किस तरह मिले? और वह एक या दो ही हैं कोई? अनंत भूलें हैं! काया की अनंत भूलें तो बहुत बडी दिखती हैं। किसीको भोजन के लिए बलाने गए हों. पर ऐसा कठोर बोलते हैं कि बत्तीस भोग का न्योता हो. तो भी अच्छा न लगे। इसके बजाय तो नहीं बुलाएँ तो अच्छा, ऐसा अंदर होता है। अरे, बोलें तो कर्कश वाणी निकलती है और मन के तो अपार दूषण होते हैं!
भूल निकाले, अंदर कौन? हमारी भूलें तो कौन मिटा सकता है? 'ज्ञानी पुरुष', कि जो खुद की सारी भूलें मिटाकर बैठे हैं। जो शरीर होने पर भी अशरीर भाव से. वीतराग भाव में रहते हैं। अशरीर भाव यानी ज्ञानबीज। सारी भलें मिटाने के बाद, खुद के अज्ञान बीज का नाश होता है और ज्ञानबीज पूर्णरूप से उगता है, वह अशरीर भाव। जिसे किंचित् मात्र-ज़रा भी देह पर ममता है, तो वह अशरीर भाव नहीं कहलाता है, और देह पर से ममता जाए किस तरह? जब तक अज्ञान है, तब तक ममता जाती नहीं।
इस जगत् में सबकुछ पता चलता है, पर खुद की भूल पता नहीं
बाक़ी, कोई कहता नहीं कि तर गए हैं। नहीं तो समझता है कि किसी दिन कोई बखेड़ा होगा और लोग जान जाएँगे कि ये डुबकियाँ खाते समय चिल्ला रहे थे। यानी नाप लेते हैं न लोग? क्यों तर गए थे और अब डुबकी खाते समय चिल्ला रहे हो? कहेंगे कि नहीं कहेंगे? यानी संयोग अच्छे मिले नहीं थे। इस बार संयोग अच्छा मिला है, काम हो जाएगा।
मतलब यह सब किस तरह इसमें प्राप्ति होगी? ओहोहो! सिर के बाल तो गिने जा सकते हैं, पर ये इनकी भूलें नहीं गिनी जा सकतीं।
यदि रोज़ पच्चीस जितनी भूलें समझ में आएँ, तब तो गज़ब शक्ति उत्पन्न होगी। संसार बाधक नहीं है, खाना-पीना बाधक नहीं है। नहीं तप ने बाँधा, या नहीं त्याग ने बाँधा है। खुद की भूलों ने ही लोगों को बाँधा