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निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
दादाश्री : हाँ, लगती है, लगती है।
प्रश्नकर्ता : इतने सारे पाप किए हैं दादा, कब छुटकारा मिलेगा, ऐसा होता है!
दादाश्री : हाँ, वे बेहिसाब, अपार दोष किए हुए हैं!
प्रश्नकर्ता : और वे जब दिखते हैं, तब ऐसा होता है कि ये दादा नहीं मिले होते तो हमारा क्या होता?
दादाश्री : पाप खुद का दिखा, तब से ही समझो कि अपनी कोई डिग्री हई है! इस जगत में कोई खुद का पाप देख नहीं सकता है। कभी भी दोष देख नहीं सकता है। दोष देखे तो भगवान हो जाए।
प्रश्नकर्ता : पत्नी के, किसीके दोष नहीं दिखे, ऐसा करो।
दादाश्री : नहीं, दोष तो दिखेंगे, वे दिखते हैं इसलिए तो आत्मा ज्ञाता है और वे ज्ञेय हैं।
प्रश्नकर्ता : पर दोष दिखें नहीं, ऐसा नहीं हो सकता?
दादाश्री : नहीं! नहीं दिखें तब तो आत्मा चला जाए, आत्मा है तो दोष दिखते हैं। पर दोष नहीं हैं, ज्ञेय हैं वे।
वीतरागों की निर्दोष दृष्टि वीतरागों की कैसी दृष्टि ! किस दृष्टि से उन्होंने देखा कि जगत् निर्दोष दिखा!! हें साहब!! हम वीतरागों से पूछे कि साहब, 'आपने तो कैसी, किन
आँखों से ऐसा देखा कि यह जगत् आपको निर्दोष दिखा?' तब वे कहेंगे, 'वह ज्ञानी को पूछना, हम आपको जवाब देने नहीं आएँगे।' डिटेल में, ब्यौरेवार ज्ञानी से पूछना। मैंने देखा, वह उन्होंने तो देखा, पर मैंने भी देखा वह!
प्रश्नकर्ता : अर्थात् दादा, निर्दोष जानना, निर्दोष मानना नहीं ऐसा? और दोषित जानना ऐसा?
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निजदोष दर्शन से... निर्दोष! दादाश्री : अपने ज्ञान में दोषित नहीं, निर्दोष ही जानना है। दोषित कोई होता ही नहीं। दोषित भ्राँत दृष्टि से है। भाँत दृष्टि दो भाग करती है। यह दोषित है और यह निर्दोष है। यह पापी है और यह पुण्यवान है। और इस दृष्टि से एक ही है कि निर्दोष ही है। और वहाँ ताला लगा दिया। बुद्धि को, वह बोलने का स्कोप ही नहीं रहा। बुद्धि को दखल देने का स्कोप ही नहीं रहा। बुद्धिबहन वहाँ से वापिस लौट जाती हैं कि 'अपना अब चलता नहीं। घर चलो।' वह कोई थोड़े ही कुँवारी है? विवाहित थी इसलिए अपने वहाँ जाती है वापिस। ससुराल चली जाती है बहन!
दोषित दृष्टि को भी तू 'जान' प्रश्नकर्ता : यानी दादा, दोषित भी नहीं मानना, निर्दोष भी नहीं मानना, पर निर्दोष जानना।
दादाश्री : जानना सभी है। दोषित नहीं जानना। दोषित जानें, वह तो हमारी दृष्टि बिगड़ी है और दोषित के साथ 'चंदभाई' जो करते हैं. वह 'हमें' देखते रहना है। 'चंदूभाई' को 'हमें' रोकना नहीं है।
प्रश्नकर्ता : वह क्या करता है उसे देखते रहना है?
दादाश्री : बस, देखते रहो। क्योंकि वह दोषित के साथ दोषित अपने आप माथापच्ची कर रहा है, पर यह 'चंदूभाई' भी निर्दोष है और वह भी निर्दोष है। दोनों लड़ते हैं, पर दोनों ही निर्दोष हैं।
प्रश्नकर्ता : मतलब, चंदूभाई दोषित हो, तब भी उसे दोषित नहीं मानना है। उसे दोषित की तरह जानना है?
दादाश्री : जानना है। वह तो जानना ही चाहिए न? प्रश्नकर्ता : और सूक्ष्म दृष्टि से वह निर्दोष ही है।
दादाश्री : सूक्ष्म दृष्टि से वह निर्दोष ही है, पर चंदूभाई का आपको जो कुछ करना हो वह करना। बाकी जगत् के संबंध में निर्दोष मानने का मैं कहता हूँ। चंदूभाई को आपको टोकना पड़े कि 'ऐसे चलोगे तो नहीं