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निजदोष दर्शन से... निर्दोष! में और लक्ष्मीजी का विषय पूरा हो कि वापिस घर पर मेमसाहब याद आती रहती हैं और मेमसाहब का विषय पूरा हुआ कि वापिस लक्ष्मीजी का विषय याद आता है! इसीलिए दूसरा कुछ खयाल में ही नहीं रहता है न! फिर दूसरे हिसाब निकालने के ही रह जाते हैं न?
निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
११७ प्रश्नकर्ता : ऐसा पूरे जगत् को निर्दोष कब देख सकेंगे?
दादाश्री : आपको उदाहरण देकर समझाता हूँ। आप समझ जाओगे। एक गाँव में एक सुनार रहता है। पाँच हज़ार लोगों का गाँव है। आपके पास सोना है, वह सारा सोना लेकर वहाँ बेचने गए। तब वह सुनार सोना ऐसे घिसता है, देखता है। अब हमारा सोना वैसे तो चाँदी जैसा दिख रहा होता है, मिलावटवाला सोना होता है, फिर भी वह डाँटता नहीं है। वह क्यों डाँटता नहीं है कि ऐसा क्यों बिगाड़कर लाए हो? क्योंकि उसकी सोने में ही दृष्टि है। और दूसरे के पास जाओ, तो वह डाँटता है कि ऐसा क्यों लाए हो? इसलिए जो पारखी है, वह डाँटता नहीं है। इसलिए आप यदि सोना ही माँगते हो, तो इसमें सोना ही देखो न! उसमें दूसरा किसलिए देखते हैं? इतना मिलावटवाला सोना क्यों लाए हो? ऐसे डाँटे-करे, उसका कब पार आए? हमें अपनी तरह से देख लेना है कि इसमें कितना सोना है और उसके इतने रुपये मिलेंगे। आपको समझ में आया न? उस दृष्टि से मैं सारे जगत् को निर्दोष देखता हूँ। सुनार इस दृष्टि से चाहे जैसा सोना हो, फिर भी सोना ही देखता है न? दूसरा कुछ देखता ही नहीं है न?
और डाँटता भी नहीं है। हम उसे बताने गए हों, तब अपने मन में होता है कि वह डाँटेगा तो? अपना सोना तो सारा खराब हो गया है ! पर नहीं, वह तो डाँटता-करता नहीं है। वह क्या कहेगा, 'मुझे दूसरा क्या लेना-देना?' वे बिना अक्कलवाले हैं या अक्कलवाले हैं?
प्रश्नकर्ता : अक्लवाला ही कहलाएगा न? दादाश्री : यह सिमिली ठीक नहीं है? प्रश्नकर्ता : ठीक है। ऐसा उदाहरण दें, तो फिट जल्दी हो जाता
हमने पारखी को देखा था, तब मुझे ऐसा होता था कि यह डाँटता क्यों नहीं कि आप सोना क्यों बिगाड़कर लाए हो? उसकी दृष्टि कितनी सुंदर है! कुछ डॉटता भी नहीं है। इसका अच्छा है वैसा भी बोलता नहीं है। पर ऐसा कहेगा, 'बेठो, चाय-पानी पीओगे न?' अरे, मिलावटी सोना है, तब भी चाय पिलाता है? ऐसा ही इसमें भी। क्या अंदर 'शुद्ध' सोना ही है न? तात्त्विक दृष्टि से देखें तो दोष किसीका भी नहीं है।
जगत् निर्दोष, प्रमाण सहित हम जगत् पूरा निर्दोष देखते हैं। हमने जगत् निर्दोष माना है। वह माना हुआ कोई थोड़े ही बदल जानेवाला है? पल में बदल जाएगा क्या? हमने निर्दोष माना हुआ है, जाना हुआ है, वह कोई थोड़े ही दोषित लगनेवाला है?!
क्योंकि जगत में कोई दोषित है ही नहीं। मैं एक्जेक्टली (जैसा है वैसा) कह देता हूँ। बुद्धि से प्रूफ (प्रमाण) देने को तैयार हूँ। इस बुद्धिशाली जगत् को, यह जो बुद्धि का फैलाव हुआ है, उन्हें प्रूफ चाहिए तो मैं देना चाहता हूँ।
शीलवान के दो गुण अभी हंड्रेड परसेन्ट (सौ प्रतिशत) शीलवान होते नहीं हैं। वैसे शीलवान इन पिछले पच्चीस सौ वर्षों में नहीं हुए हैं। पिछले पच्चीस सौ वर्षों के जो कर्म हैं, उनमें ऐसा शीलवान हो ही नहीं सकता मनुष्य। शील आता ज़रूर है, पर पूर्णता नहीं आती।
प्रश्नकर्ता : पर शील की दिशा में तो जा सकते हैं न? दादाश्री : हाँ, जा सकते हैं।
हैं।
दादाश्री : अब यह उदाहरण कोई जानता नहीं क्या? प्रश्नकर्ता : जानते होंगे। दादाश्री : ना, किस तरह ख्याल में आए? सारा दिन ध्यान लक्ष्मीजी