Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 73
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! ११९ प्रश्नकर्ता : तो वहाँ तक पहुँचने के लिए क्या करना चाहिए? मेरा एक सबसे बड़ा उलझनवाला प्रश्न है। उसके लिए क्या करना चाहिए, वह पता नहीं चलता है। दादाश्री : छोटे वाक्य से काम लेना चाहिए कि किसी दुश्मन की तरफ भाव भी नहीं बिगडे, और बिगडा हो तो प्रतिक्रमण से सुधार लो। बिगड़ जाना, वह कमजोरी के कारण बिगड़ जाता है, तो प्रतिक्रमण से सुधार लो उसे! ऐसे करते-करते वह चीज़ सिद्ध होगी। और दसरा, इस जगत में कोई दोषित है ही नहीं। असल में हर एक जीव निर्दोष ही है, जगत् में। दोषित दिखता है, वह ही भ्रांति है। कोई दोषित नहीं है, वह 'उसके' लक्ष्य में रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : पर उसे बुद्धि से समझना बहुत कठिन है। दादाश्री : बुद्धि समझने देती ही नहीं है यह। कोई दोषित नहीं, वह बुद्धि समझने देती ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो उसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : यह वाक्य तो आपके अनुभव में आए तो अनुभव ही आपको कह देगा। पहले इस वाक्य से शुरूआत करो। तो फिर उसका अनुभव आपको कह देगा। इसलिए फिर बुद्धि शांत हो जाएगी। यह है ज्ञान का थर्मामीटर निजदोष दर्शन से... निर्दोष! प्रश्नकर्ता : बहुत ही भूल में। दादाश्री : जब जगत् निर्दोष दिखेगा, आपकी जेब काट रहा हो वही व्यक्ति आपको निर्दोष दिखे, तब जानना कि करेक्टनेस (यथार्थता) पर पहुँचे। एक रकम आप मानोगे? स्कूल में पढ़ते समय एरिथमेटिक (अंक गणित) में सिखलाते हैं न मास्टरजी कि कुछ नहीं होता तो सपोज़ (मानो कि) १०० ऐसा कहते हैं न? नहीं कहते, १०० मानो तो जवाब आएगा। तब अपने मन में ऐसा होता है कि मास्टरजी ने १०० पर कोई जादू किया लगता है। तब हम कहें कि नहीं, मैं तो सवा सौ मानूँगा। तब कहे, फिर तुझे मानना हो वह मान न! ऐसी धारणा से जवाब आए, वैसा है। वैसी एक रकम मैं मानने का कहता हूँ आपको। 'इस जगत् में कोई दोषित ही नहीं है। जगत् पूरा ही निर्दोष है।' आपको दोष दिखते हैं? प्रश्नकर्ता : देखें तो दिखते हैं। दादाश्री : वास्तव में दोष हैं नहीं, फिर भी दोष दिखते हैं, वही अपनी नासमझी है। लोगों का किचिंत् मात्र दोष दिखता है वह अपनी नासमझी है। यह रकम माने और वह रकम मानकर जवाब लाए तो जवाब आ जाए ऐसा है। कोई दोषित है ही नहीं जगत् में। आपके दोषों से ही आपको बंधन है। दूसरे किसीके दोष हैं ही नहीं। कोई आपका नुकसान करे, कोई गालियाँ दे, इन्सल्ट (अपमान) करे तो उसका दोष नहीं है, दोष आपका ही है। दृष्टि के अनुसार सृष्टि प्रश्नकर्ता : कभी ऐसा भी होता है कि एक ही व्यक्ति आज हमें अच्छा लगता है। दूसरे दिन तिरस्कारयुक्त लगता है। तीसरे दिन वह व्यक्ति इस जगत् के सार के रूप में आप पूछो कि, इस जगत् का सार क्या है? तब कहें, 'कोई भी व्यक्ति दोषित है ही नहीं जगत् में। मनुष्य भी दोषित नहीं है, बाघ भी दोषित नहीं है।' इसीलिए इस जवाब पर से पूरी रकम ढूंढ निकालनी है। यह जवाब क्या है कि यह जगत् पूरा निर्दोष स्वरूप है। जीव मात्र निर्दोष है। दोषित दिखता है, वह खुद की उस अज्ञानता से। बोलो, अब कितनी भूल में होंगे आप?

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