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जगत् निर्दोष
भगवान ने देखा जग निर्दोष प्रश्नकर्ता : भगवान महावीर ने पूरे जगत् को निर्दोष देखा।
दादाश्री : भगवान ने निर्दोष देखा और खुद की निर्दोष दृष्टि से निर्दोष देखा। उन्हें कोई दोषित नहीं लगा। वैसा मैंने भी निर्दोष देखा है
और मुझे भी कोई दोषित दिखता नहीं है। फूलमाला चढ़ाए तो भी कोई दोषित नहीं और गालियाँ दें तो भी कोई दोषित नहीं। यह तो मायावी दृष्टि के कारण सब दोषित दिखते हैं। इसमें सिर्फ दृष्टि का ही दोष है।
प्रश्नकर्ता : निर्दोषता किस तरह प्राप्त होती है?
दादाश्री : पूरे जगत् को निर्दोष देखोगे तब ! मैंने पूरे जगत् को निर्दोष देखा है, तब मैं निर्दोष हुआ हूँ। हित करनेवाले को और अहित करनेवाले को भी हम निर्दोष देखते हैं।
कोई दोषित नहीं है। दोष उसने किया हो, तब भी असल में उसके पिछले जन्म में किया होगा। पर फिर तो उसकी इच्छा नहीं होती, फिर भी
अभी हो जाता है। अभी उसकी इच्छा के बिना हो जाता है न? भरा हुआ माल है, इसलिए उसमें उसका दोष नहीं है न, इसीलिए निर्दोष माना है।
कौन-सी दृष्टि से जग दिखे निर्दोष पुद्गल को देखना मत, पुद्गल की तरफ दृष्टि मत करना। आत्मा की तरफ ही दृष्टि करना। कान में कीलें मारनेवाले. वे भी भगवान महावीर को निर्दोष दिखे। दोषित दिखता है, वही अपनी भूल है। वह एक प्रकार का अपना अहंकार है। यह तो हम बिना तनख्वाह के काजी बनते हैं और फिर मार खाते हैं। मोक्ष जाते हुए ये लोग हमें उलझाते हैं, ऐसा जो बोलते
निजदोष दर्शन से... निर्दोष! हैं, वह तो व्यवहार से हम बोलते हैं। इस इन्द्रियज्ञान से जो दिखता है वैसा बोलते हैं। पर असल हक़ीक़त में तो लोग उलझा ही नहीं सकते हैं न! क्योंकि कोई जीव किसी जीव में किंचित् मात्र दखल कर ही नहीं सके ऐसा यह जगत् है। ये लोग तो बेचारे प्रकृति जो नाच करवाती है, उस अनुसार नाचते हैं, इसलिए उसमें किसीका दोष है ही नहीं। जगत् पूरा ही निर्दोष है। मुझे खुद को निर्दोष अनुभव में आता है। आपको वह निर्दोष अनुभव में आएगा, तब आप भी इस जगत् से छूट गए। नहीं तो कोई एक भी जीव दोषित लगेगा, तब तक आप छूटे नहीं हैं।
प्रश्नकर्ता : इसमें सभी जीव आ जाते हैं? मनुष्य ही नहीं, परन्तु चींटी-मकोड़े सभी आ जाते हैं?
दादाश्री : हाँ, जीव मात्र निर्दोष स्वभाव के दिखने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : दादा, आपने जीव मात्र निर्दोष है ऐसा कहा है। अब नौकरी में मैंने कहीं भूल की और मेरा ऊपरी अमलदार ऐसा कहे कि तूने यह भूल की। फिर वह मुझे डाँटेगा, ठपकारेगा। अब यदि मैं निर्दोष होऊँ तो असल में मुझे नहीं डाँटना चाहिए न?
दादाश्री : किसीका डाँटना हमें देखना नहीं है। हमें, डाँटनेवाला भी निर्दोष है, ऐसा हमारी समझ में होना चाहिए। इसीलिए किसी पर दोष नहीं डाल सकते हैं। जितने निर्दोष आपको दिखेंगे, उतने आप 'समझ में आए' कहलाओगे।
मुझे जगत् निर्दोष दिखता है। आपको ऐसी दृष्टि आएगी तब यह पज़ल सॉल्व हो जाएगा। मैं आपको ऐसा प्रकाश दंगा और इतने पाप धो डालँगा कि जिससे आपका प्रकाश बना रहेगा। और आपको निर्दोष दिखता जाएगा। और साथ में पाँच आज्ञा में रहोगे, तो वह जो दिया हुआ ज्ञान है, उसे थोड़ा भी फ्रेक्चर नहीं होने देंगी।
तत्त्व दृष्टि से जगत् निर्दोष हम पूरे जगत् को निर्दोष देखते हैं।