Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 78
________________ १३० निजदोष दर्शन से... निर्दोष! दिखते हैं। वह अभी अपनी देखने में भल होती है. इतना समझना चाहिए। वास्तव में कोई दोषित है ही नहीं। भ्रांति से दोषित लगते हैं। निजदोष दर्शन से... निर्दोष! साँप, बिच्छू भी हैं निर्दोष... इस दुनिया में कोई दोषित है ही नहीं। प्रश्नकर्ता : उदयकर्म से ही है, जो है वह, उसी कारण से न? दादाश्री : हाँ, जगत् पूरा निर्दोष है ही। किस दृष्टि से निर्दोष है? तब कहे, यदि शुद्धात्मा देखें तो निर्दोष ही है न! दोषित कौन है? बाहर का पुद्गल न! यह जिसे जगत् मानता है। वह पुद्गल... हमें क्या जानना है कि वह पुद्गल उदयकर्म के अधीन है आज। वह खुद के अधीन नहीं है, खुद की इच्छा नहीं हो फिर भी करना पड़ता है यह। इसलिए वह निर्दोष ही है बेचारा। इसलिए हमें पूरा जगत् निर्दोष ही... जीव मात्र निर्दोष ही दिखता है। जगत् निर्दोष स्वभाव का है। पूरा ही जगत् निर्दोष है। आपको दूसरों के जो दोष दिखते हैं, वे आपमें दोष होने से ही दोष दिखते हैं। जगत् दोषित नहीं है, वह आपको यदि दृष्टि में आए तब ही आप मोक्ष जाओगे। जगत् दोषित है, वैसी दृष्टि आए तो आपको यहाँ आराम से पड़े रहना है। महावीर ने भी देखे स्वदोष! चोर आपकी जेब काटे फिर भी वह आपको दोषित न दिखे, ऐसे कितने सारे कारण होंगे, तब मोक्ष होगा। आत्मज्ञान होने के बाद ऐसी दृष्टि होगी तभी मोक्ष होगा, नहीं तो मोक्ष होगा नहीं। देखने जाएँ तो, यह तो जो दोष दिखता है वह आपकी बुद्धि आपको फँसाती है। बाकी दोषित कोई है ही नहीं इस जगत् में! हम में बुद्धि से ऐसा लगता है कि इसने तो सारी ज़िन्दगी में कोई ऐसा पाप किया नहीं है और इसके साथ ऐसा? तब कहे, ना, वह कितने ही जन्मों के पाप, अब गाढ़ पाप होते हैं न, वे पकते देर से हैं। आपने एक अभी ऐसा गाढ़ कर्म बाँधा, वह पाँच हजार वर्षों में पाप पकेगा। विपाक होने में तो बहुत टाइम जाता है। और कितने ही हल्के कर्म होते हैं, वे सौ वर्ष में पक जाते हैं, इसलिए हमारे लोग कहते हैं न सरल व्यक्ति है, अच्छा व्यक्ति है। सरल के कर्म सब गाढ़ नहीं होते हैं। और कर्म विपाक हए बिना फल देते नहीं हैं। आम के पेड़ पर आम इतने बड़े और रस नहीं निकलता? विपाक होना चाहिए। यह ज्ञान होने के बाद दोषित हमें भी कोई मनुष्य, कोई जीव दिखा नहीं है। जब यह दृष्टि मिलेगी, तब महावीर दृष्टि हो गई है ऐसा नक्की होगा। जिनकी दृष्टि में कोई दोषित दिखता नहीं था। भगवान को यहाँ कान में कीलें ठोकी, तो कौन दोषित दिखा था? प्रश्नकर्ता : स्वकर्म। दादाश्री : स्वकर्म दिखे। देवों ने खटमल डाले, दूसरा किया, तीसरा किया, तब भी दोषित कौन दिखा? स्वकर्म। ___महावीर भगवान को भी उन लोगों ने कीलें ठोकी थीं, तब तुरन्त ही ज्ञान में देखा कि किसका परिणाम आया है! यानी कान में कीलें ठोकी, कोई जप करता हो, तप करता हो. उसमें हमें उसका दोष क्या देखना है? ऐसा है, उसके 'व्यवस्थित' के ताबे में होता है. वैसा बेचारा करता है। उसमें हमें क्या लेना-देना? हमें टीका करने का कोई कारण है? हम उसके साथ नये करार किसलिए बाँधे? उसे जो अनुकूल आए, वैसा वह करता है। हमें तो मोक्ष के साथ ही काम है। हमें दूसरे के साथ काम नहीं है। और जगत् में हमें कोई दोषित दिखता नहीं है। जेब काटे वह भी दोषित नहीं दिखता है। यानी कि जगत् में कोई भी जीव दोषित नहीं दिखता है। साँप हो या बिच्छू हो या चाहे जो हो, जो आपको दोषित दिखता है न, उसका भय आपमें घुस जाता है। और हमें दोषित दिखता ही नहीं है। किस आधार पर दोषित नहीं है, वह सब आधार हम ज्ञान से जानते हैं। यह दोषित दिखता है, वह तो भ्रांत दृष्टि है, भ्रांति की दृष्टि ! यह चोर है और यह साहूकार है, यह फ़लाना है, वह भ्रांति की दृष्टि है। हमारा लक्ष्य क्या होना चाहिए कि सभी जीव मात्र निर्दोष है। हमें दोषदृष्टि से दोषित

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