Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 55
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! दादाश्री : हाँ, यानी क्रोध आया, पर फिर बाद में तो ऐसा लगा कि इसका दोष नहीं है। इसलिए, आपको अपनी भूल दिखी। प्रश्नकर्ता : तुरन्त नहीं लगा। दादाश्री : बाद में भी, वह उसने भूल नहीं की, यानी यह भूल खुद ने की थी, ऐसा लगा। उसने भूल की होती तो खुद का दोष दिखता ही नहीं! प्रश्नकर्ता : ऐसा तो हमारे यहाँ रोज़ होता है ! गुस्सा आ ही जाता दादाश्री : तब तो आपको प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। पर किसलिए प्रतिक्रमण? पछतावा करने का कारण? उसने ऐसा किया किसलिए? तब कहें, उसने जो किया वह आपके कर्म का उदय है। इसलिए उसने यह भूल की। कोई भी मनुष्य भूल करता है, वह आपके निमित्त से ही करता है। इसलिए आपके ही कर्म का उदय है और उसने भूल की। इसलिए आपको फिर पछतावा कर लेना चाहिए। आपको गुस्सा होने की जरूरत नहीं थी, यहाँ इस जगह पर। ऐसे ही पछतावा नहीं किया जाता। गुनाह दिखता हो पर साबित नहीं हो, तब तक पछतावा किस तरह हो? वह तो साबित होना चाहिए कि भाई, खुद के ही कर्म का उदय है। ऐसी समझ होनी चाहिए उसे। अभी कोई मुझे धौल मारे तो मैं तो तुरन्त उसे आशीर्वाद दूँ। उसका क्या कारण? वह धौल मारता है? इस दुनिया में कोई धौल मार नहीं सकता। पहले तो मैंने इनाम रखा था, आज से तीस साल पहले. इन्डिया में इनाम रखा था कि मुझे कोई भी आदमी एक धौल मारेगा उसे पाँच सौ रुपये नकद दूँगा। पर कोई धौल मारनेवाला निकला ही नहीं। कोई दु:खी हो कि 'भई, दु:ख का मारा तू यहाँ उधार ढूंढे, उसके बजाय यह ले जा न!' तब वह कहे, 'ना बाबा, उधार ढूंढना अच्छा, पर आपको धौल मारकर मेरी क्या दशा होगी?!' ८४ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! यह दुनिया बिलकुल नियम से चलती है। भगवान नहीं चलाते फिर भी स्ट्रोंग नियम अनुसार है। भगवान की हाज़िरी से चलती है यह । इसलिए कोई भी आपके साथ दोष करे तो वह आपका ही प्रतिघोष है। दुनिया में किसीका दोष होता ही नहीं है। मझे सारे जगत के जीव मात्र निर्दोष ही दिखते हैं। ये जो दोषित दिखते हैं, वही भ्रांति हैं। अपना विज्ञान ऐसा कहता है कि किसी भी मनुष्य का दोष दिखे, तो वह आपका दोष है। आपके दोष का वह रिएक्शन (प्रत्याघात) आया है। आत्मा भी वीतराग है और प्रकृति भी वीतराग है। पर आप जैसा दोष निकालोगे उतना उसका रिएक्शन आएगा। तब दोष हों, वे डिस्चार्ज रूप... सभी निर्दोष ही हैं। दोषित दिखता है, वही अपना दोष है। किसी जीव का दोष है ही नहीं। ऐसा दिखा तो ज्ञान कहलाता है, पर ऐसा दिखता नहीं न? प्रश्नकर्ता : दोषित देखना नहीं है, फिर भी दोषित दिखे, वह डिस्चार्ज कहलाता है न? दादाश्री : डिस्जार्च। डिस्चार्ज टु बी हैबिच्युएटेड। खुद की सत्ता नहीं वह हैबिच्युएटेड कहलाता है। प्रश्नकर्ता : दोषित दिखे, तो वह डिस्चार्ज किस तरह कहलाएगा? दादाश्री : दोषित देखने का भाव छूट गया, इसलिए डिस्चार्ज कहलाएगा न ! पर वह उसने पूरी-पूरी आज्ञा पाली नहीं। वह धीरे-धीरे आज्ञा पालता जाएगा, वैसे-वैसे शुद्ध हो जाएगा। तब तक उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : पर बेसिकली ऐसा फिट हो गया है कि निर्दोष ही है। पर कभी कभार दोषित दिख जाता है। दादाश्री : इसलिए ही उसे हैबिच्युएटेड है, कहा है न! नहीं करना

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