Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 59
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! से भीतर ठंडक रहती है, इतना ही अच्छा है न! प्रश्नकर्ता : आप तो कहते हैं न कि एक क्षण भर के लिए भी हमारा मोक्ष का ध्येय हम चूकते नहीं हैं। दादाश्री : एक मिनट भी, एक क्षण भी नहीं चूका जाता। प्रश्नकर्ता : अब पूरा मोक्षमार्ग में रहना और यह व्यवहार वापस। एक-एक व्यक्ति को दुःखदायी नहीं हो, उसका रोग निकले, उतना कड़क बोलना पड़ता है, वह सब करना होता है। दादाश्री : फिर लुटेरों की दो कहानियाँ भी पढ़ते हैं हम। प्रश्नकर्ता : वह भी करना और मोक्ष नहीं चूकना है। दादाश्री : लुटेरों की दो कहानियाँ भी पढ़ते हैं हम। वह किताब हाथ में आई हो तो उसे पूरी करते हैं। पेपर पढ़ने की फाइल का भी निकाल करते हैं और यह कहता है, 'हमें काम ज्यादा है!' लो, ये कामवाले आए! यहाँ पानी रखा हो न तो, यहाँ धराते हैं मुझे, मुझे नहीं पीना हो फिर भी! वे समझते हैं कि यह हो गया काम! मझे नहीं पीना हो फिर भी धराते हैं। मैं कहूँ कि 'ना, अभी नहीं।' उसे वे काम मानते हैं। हम जो 'कर्म नहीं बंधते' ऐसा कहते हैं न, तो पाँच आज्ञा पालता हो अस्सी प्रतिशत तब। नहीं तो कर्म बंधेगे ही। आज्ञा नहीं पालें, तब कर्म बंधेगे ही। मेरे पास सारा दिन बैठे रहें, फिर भी कुछ नहीं होगा। और मुझसे छह महीनों तक नहीं मिला, पर आज्ञा पालता हो, तो उसका कल्याण हो जाएगा। बाकी, यहाँ तो सभी को ठंडक लगती है न, इसलिए सभी बैठे ही रहते हैं न! कुत्ता भी यहाँ से खिसकता नहीं है, मुआ! मारे तो भी वापस आकर बैठता है। हम औरंगाबाद गए थे, वहाँ एक कुत्ता मेरे पास से खिसकता ही नहीं था। निजदोष दर्शन से... निर्दोष! नहीं दौड़ा जाता। यह तो सारा फिर प्रमादी खाता। हमें उठाने पड़ते हैं। इसलिए ये हैं तो, बिल्ली के बच्चों जैसे हैं। बिल्ली को अपने बच्चे खुद उठाकर घूमना पड़ता है, और आप बन्दर के बच्चे जैसे हो। आप पकड़कर रखते हो, छोड़ते नहीं हो, चौकस! डिजाइन यानी डिजाइन! और इनको तो हमें उठाना पड़ता है। क्योंकि उनकी सरलता देखकर हम खुश होते हैं। और खुश होते हैं इसलिए उठाकर फिरते हैं। सरलता तो सबकुछ खुला कर देती है। अलमारियाँ खोल डालते हैं। लो साहब, देख लो। कहेंगे कि, 'हमारे पास यह माल है।' और असरलता यानी एक ही अलमारी खोलते हैं। दूसरा तो, कहोगे तो उघाड़ेंगे, वर्ना नहीं उघाड़ेंगे। और ये तो कहने से पहले ही सब उघाड़ देते हैं। सरलता आप समझे?! गुण देखने से गुण प्रकट और सामनेवाले का गुण देखा कि गुण उत्पन्न होगा। बस! हम गाली दें और कोई न बोले, इसलिए हम समझें कि इसमें कितने अच्छे गुण हैं ! तब हमारे में वे गुण उत्पन्न होंगे। और किसीका दोष है ही नहीं इस दुनिया में। खुद के दोष से ही है यह सब! __ निजकर्म यानी निजदोष यह करम-करम गाते हैं, लेकिन करम क्या है, उसका उनको भान नहीं है। खुद के कर्म यानी निजदोष। आत्मा निर्दोष है, पर निजदोष को लेकर बंधा हुआ है। जितने दोष दिखते जाएँ, उतनी मुक्ति अनुभव में आती है। किसी-किसी दोष के तो लाख-लाख परतें होती हैं, इसलिए लाखलाख बार देखें, तब वे निकलते जाते हैं। दोष तो मन-वचन-काया में भरे हए ही हैं। हमने खुद ज्ञान में देखा है कि जगत् किससे बंधा है। मात्र निजदोष से बंधा है। निरा भूलों का भंडार अंदर भरा पड़ा है। प्रतिक्षण दोष दिखें तब काम हुआ कहलाता है। यह सब माल आप भरकर लाए हो, वह पूछे बिना का ही है न? शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठा, इसलिए भूलें दिखती हैं। फिर भी भूलें नहीं दिखें, वह तो निरा प्रमाद कहलाएगा। सरल को ज्ञानी कृपा अपार मोक्षमार्ग हाथ में आने के बाद जैसा आपसे दौड़ा जाता है, वैसा इनसे

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