Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 51
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! अटेकवाले स्वभाव के कारण है। हमें गालियाँ दे वह भी निर्दोष है, मार मारे वह भी निर्दोष है। नुकसान करे वह भी निर्दोष है। क्योंकि हमारा हिसाब ही है यह सब। हमारा हिसाब हमें वह वापिस देता है। वह हम वापिस फिर उसे दें तो फिर नया हिसाब बाँधते हैं। इसलिए हम 'व्यवस्थित' मानें, इसलिए बस! कह देना कि, 'लो हिसाब चोखा चकता हो गया।' निर्दोष देखोगे, तो मोक्ष होगा। दोषित देखा, इसलिए फिर आपने आत्मा देखा ही नहीं। सामनेवाले में यदि आप आत्मा देखो तो वह दोषित नहीं निजदोष दर्शन से... निर्दोष! हाँ, वह सब होता है, भीतर जैसा माल भरा है वैसा निकलेगा! पर कर्ता देखा तो हमारा ज्ञान कच्चा पड़ गया। क्योंकि यह सब परसत्ता ही करती है, आपको ऐसे ज्ञान कच्चा पड़ जाता है क्या? प्रश्नकर्ता : हाँ, कई बार पड़ जाता है। दादाश्री : प्रकृति झगड़े उसमें हर्ज नहीं, पर 'उसे' कर्ता न देखे। प्रकृति तो खुद ने ड्रॉइंग किया हो न, पिछले जन्म में फिल्म उतारी, उसके अनुसार लड़ती भी है, मारामारी भी करती है। पर हमें उसे कर्त्ता नहीं देखना है। देखो सामनेवाले को भी अकर्ता आपने कुछ कहा, तब उसे दोष दिखाई दिया, तो उसका फायदा क्या होता है? प्रश्नकर्ता : फायदा काहे का? नुकसान ही होता है न! दादाश्री : किस ज्ञान के आधार पर वह दोष देखता है? प्रश्नकर्ता : उसमें ज्ञान कहाँ आया? वह तो अज्ञानता के कारण ही दोष देखता है न? दादाश्री : हाँ, पर उसने ज्ञान लिया हो, फिर भी दोष देखता है तो? वह अपना ज्ञान ही कच्चा करता है। खुद कर्ता नहीं और सामनेवाले को कर्ता देखता है। वह खुद ही कर्ता होने के बराबर है। सामनेवाले को किसी अंश तक कर्ता देखे, इसलिए खुद कच्चा पड़ गया। ऐसा हमारा ज्ञान कहता है। फिर प्रकृति भले ही लड़े-झगड़े पर कर्ता नहीं देखना है। प्रकृति तो झगड़ भी पड़े! प्रश्नकर्ता : कई बार बेहद झगड़ पड़ती है, वह क्या है? दादाश्री : बेहद? अरे, वह तो अच्छा, मारामारी नहीं करता, इतना अच्छा कहलाता है। नहीं तो उससे आगे जाता है, बंदूक लेकर पीछे पड़े, प्रकृति तो! सारे दिन में किसीका भी कोई गुनाह हुआ नहीं होता है। जितने किसीके दोष दिखते हैं, उतनी अभी कमी है! सब आपका ही हिसाब है। वह है एकांतिक रूप से अहंकारी खुद के दोष दिखते हैं अब? प्रश्नकर्ता : हाँ, वे दिखाई देते हैं। दादाश्री : नहीं तो खुद को खुद का एक भी दोष नहीं दिखे। अहंकारी मनुष्य खुद का दोष नहीं देख सकता है। केवल बड़े-बड़े दोष समझता है कि ये दो-चार दोष हैं मुझमें, पर सारे देख नहीं सकता है! किसीका दोष हो जाए, तो उसमें तीर्थंकर हाथ नहीं डालते थे। ये हाथ डालते हैं, उतना अहंकार है। दोषित देखनेवाला अहंकार है और दोष भी अहंकार है। दोनों अहंकार हैं! प्रश्नकर्ता : और दोष करनेवाला भी? दादाश्री : वह भी अहंकार है और दोषित देखनेवाला भी अहंकार प्रश्नकर्ता : दोष भी अहंकार है, ऐसा क्यों कहते हैं आप? दादाश्री : मतलब कि दोष को करनेवाला ही, बस। फिर भी दोष

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