Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 49
________________ ७१ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! आत्मा चला नहीं जाता है। पर उस घड़ी आत्मा का सुख आना बंद हो जाता है और हमें सुख आना बंद नहीं होता, हमें तो निरंतर रहा करता है। छलकता रहता है उल्टे, साथवाले को भी सुख लगता है। हमारे साथ बैठे हों न, उन्हें भी सुख लगता है। सुख छलकता ही रहता है, उतना आत्मा का सुख है, यह शरीर होने के बावजूद, यह कलियुग होने के बावजूद! अब भूल होती है, वह दिखती है? पता चलता है सब? और जागृति से सारे खुद के दोष, सब ही दिखता है। सामनेवाले का दोष निकालना उसका नाम जागृति नहीं है, वह तो अज्ञानी को बहुत होता है। सामनेवाले के दोष बिलकुल दिखे नहीं, खुद के दोष देखने से बिलकुल फुरसत मिले ही नहीं, उसका नाम जागृति। इसलिए हो गए ज्ञानी प्रश्नकर्ता : जितने विभाव हों वे सारे दोष माने जाते हैं? दादाश्री : अब विभाव होते ही नहीं। अब जो दोष दिखते हैं न, वे मानसिक दोष दिखते हैं। मन:पर्यव को लेकर, मानसिक दोष, बुद्धि के दोष, अहंकार के दोष अर्थात् अंत:करण के सारे दोष आपको दिखते हैं। चंदूभाई के दोष आपको दिखते हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : चंदूभाई के दोष आपको दिखे कि आप हो गए ज्ञानी। यह तो आप मुझसे अभी दसेक घंटे मिले होंगे। यह तो मैंने आपके हाथों में, जिस हीरे की कीमत न आंकी जाए, ऐसा आपके हाथ में रखा है। पर वह हीरा बालक के हाथ में आने से उसकी वेल्यु ही नहीं है! | दिखें प्रपात दोष के... प्रतिक्षण दोष दिखते हैं न? निजदोष दर्शन से... निर्दोष! प्रश्नकर्ता : प्रतिक्षण तो नहीं, थोड़े-थोड़े दिखते है। दादाश्री : अभी तो प्रतिक्षण दिखेंगे। अभी तो बहुत दोष हैं। अपार हैं, पर अभी दिखते नहीं हैं। ये किसीको दस दोष खुद के नहीं दिखते हैं, दो-तीन होंगे ऐसा बोलते हैं, क्योंकि दोष दिखें तब से मोक्ष में जाने की तैयारी हो गई। दोषों का प्रपात दिखता है न, सारा। अब जितने दिखे उतने गए। फिर दूसरे दिन उतने उत्पन्न होते रहेंगे। निरंतर बहते ही रहेंगे। जब तक निर्दोष नहीं बना देते, तब तक बहते रहेंगे। अब हल्का हुआ जाएगा! दोष बहुत सारे दिखें ऐसा करो, कोई मेहनत कड़ी है बहुत ही!!! आपको, आपका जो स्वरूप है, वह स्वरूप और चंदूलाल अलग। चंदूलाल का कंधा थपथपाओ! चंदूलाल कुछ अच्छा करके आए हों, उस दिन कहो कि आपने तो इतनी उम्र में अच्छा लाभ उठाया, आप छूटोगे तो हमें छोडोगे। आप जब तक चिपटे रहोगे, तब तक हमारा निबटारा नहीं होगा। इसलिए हमें कहना चाहिए कि 'जल्दी काम पूरा करके सत्संग में जाओ।' 'चंदूभाई ऐसा करो, वैसा करो', ऐसे प्रोत्साहित करते रहना। आप तो ऊपरी हुए और 'बच्चों के साथ इतनी हाय-हाय क्यों करते हो?' ऐसा आपको कहना चाहिए। किस जन्म में बच्चे नहीं थे। कुत्ते-बिल्ली में भी, बच्चों बिना का तो एक भी जन्म गया नहीं है न। नहीं हैं, ये सच में बच्चे! ये तो लौकिक चीजें हैं। यह तो कोई सच्चा है? यह तो रिलेटिव है। यह लौकी शोर मचाती है, मेरे बच्चे कितने? सौ लौकी लगी हों तो सौ के सौ तेरे बच्चे! पत्ते-पत्ते पर लौकी लगती है, वैसे इन लोगों को डेढ़ वर्ष में एक-एक लौकी उगती रहती है!!! इस लौकी में भी जीव रहा हुआ है और इसमें भी जीव रहा हआ है। उसमें एकेन्द्रिय जीव रहा हुआ है, और इसमें पंचेन्द्रिय जीव है। पर जीव तो दोनों जगहों पर रहा हुआ है न! जीव तो वैसा का वैसा ही है न! मतलब खुद के दोष दिखते हैं न? चंदूभाई को कहना भी चाहिए कि, 'चंदूभाई ऐसा क्यों करते हो? हम आपका छुटकारा करना चाहते हैं।

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