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निजदोष दर्शन से... निर्दोष! दोष जानते हैं कि यह मुआ कुछ भी करनेवाला नहीं है। मुँह से बोलता है उतना ही, किस तरह दोष निकालेगा?
जो एक दोष निकाल सके, वह भगवान हो जाए!!! एक ही दोष! एक दोष का निवारण करे वह भगवान हो जाए। यह तो दोष का निवारण होता है, पर दूसरा दोष खड़ा करके। दूसरा दोष खड़ा करके पहलेवाले का निवारण करता है। बाकी, खुद की एक भूल मिटाए, तो भगवान बनता
प्रश्नकर्ता : दूसरा दोष खड़ा न करे, वह किस तरह होता है?
दादाश्री: ये तो सब भूलें ही हैं, पर एक भल मिटे. वह कब? समकित होने के बाद मिटती है, नहीं तो मिटती नहीं। तब तक एक भूल मिटती नहीं। तब तक तो पहले खोदता है और फिर भरता है। खोदता है और भरता है, खोदता है और भरता है। कोई क्रिया उसकी काम आती नहीं। सारी क्रियाएँ निष्फल जाती हैं।
निजदोष दर्शन से... निर्दोष! दोष, उतने ही चाहिए प्रतिक्रमण 'अनंत दोष का भाजन है, तब उतने ही प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे। जितने दोष भरकर लाए हैं, वे आपको दिखेंगे। ज्ञानी पुरुष के ज्ञान देने के बाद दोष दिखने लगते हैं, नहीं तो खुद के दोष दिखते नहीं हैं, उसका नाम ही अज्ञानता। खुद का दोष एक भी दिखता नहीं है और किसीके देखने हों तो बहुत सारे देख ले, उसका नाम मिथ्यात्व।'
और ज्ञानी पुरुष के ज्ञान देने के बाद, दिव्यचक्षु देने के बाद खुद के सर्व दोष दिखते हैं। जरा-सा मन बदलाव हुआ हो, तो भी पता चल जाता है कि यह दोष हुआ। यह तो वीतराग मार्ग, एकअवतारी मार्ग है। यह तो बहत जिम्मेदारीवाला मार्ग है। एक अवतार में सब चोखा ही हो जाना चाहिए। यहाँ पहले चोखा हो जाना चाहिए।
मतलब निरे दोषों का भंडार हो। यहाँ ज्ञानविधि में आओगे तो मैं सारे पाप धो दूंगा। वह धोने का मेरे हिस्से में आया है। फिर खुद के दोष दिखेंगे। और खुद के दोष दिखने लगें, तब से समझना कि अब मोक्ष में जाने की तैयारी हुई। बाकी किसीको भी खुद के दोष दिखे नहीं हैं।
आत्मा खुद ही थर्मामीटर जैसा जो खुद करता है न, उसमें खुद को, भूल है ऐसा कभी पता नहीं चलता। खुद जो करता हो, सहज स्वभाव से जो कार्य क्रिया करता हो न, उसमें खुद की भूल है, ऐसा कभी भी दिखता नहीं, उल्टे कोई भूल दिखाए, तब भी उसे उल्टा दिखता है। वह जप करता हो या तप करता हो, त्याग करता हो, उसमें उसे खुद की भूल नहीं दिखती। भूल तो, खुद आत्मस्वरूप हो जाए, ज्ञानी पुरुष का दिया हुआ आत्मा प्राप्त हो जाए तो आत्मा अकेला ही थरमामीटर समान है कि जो भल दिखलाता है. बाकी कोई भूल नहीं दिखलाता। खुद की भूल नहीं दिखाई देती किसीको। भूल दिखे, तब तो काम हो ही गया न!
और भूल मिटे, तब तो परमात्मा हो जाता है। परमात्मा तो है ही,
वह कहलाए जैन
आपमें दो-चार दोष होंगे या नहीं होंगे? प्रश्नकर्ता : ज़्यादा। दादाश्री : दस-पंद्रह दोष होंगे? प्रश्नकर्ता : वे गिनें तो गिने नहीं जाएँ।
दादाश्री: हाँ। उसका नाम जैन कहलाता है। जैन किसका नाम कहलाए कि खुद में अहंकार है, दोष हैं, ऐसा खुद को विश्वास है। भले ही दोष दिखें नहीं, पर वे हैं ऐसी जिसे श्रद्धा है, उसे जैन कहते हैं। खुद अनंत दोष का भाजन है। पर अब कब उन्हें खाली कर पाओगे?
प्रश्नकर्ता : वह तो आपकी कृपा होगी तब। दादाश्री : बहुत बड़ी बात करी!