Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 40
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! ५३ भगवान हैं न, वे संपूर्ण क्लियर (चोखे) हैं और हमारा 'अन्क्लिअरन्स' दिखाते हैं। यह ज्ञान मिलने के बाद, सभी को 'दो' तो होते ही हैं। उन लोगों को भी 'दो' होते ही हैं। जिन्हें ज्ञान नहीं मिला उन्हें भी 'दो' होते है और इन्हें भी 'दो' होते हैं। इस ज्ञान के बाद अंदर और बाहर देख सकते हैं। अंदर भूल बिना का चारित्र यह है, ऐसा वे दर्शन में देख सकते हैं। और भल रहित चारित्र जितना उसके दर्शन में ऊँचा गया, उतनी ही, वे भूलें उसे दिखती हैं। भीतर जितना ट्रान्सपेरेन्ट (पारदर्शक) और क्लियर हुआ, दर्पण शुद्ध हुआ कि तुरन्त अंदर दिखता है। उसमें झलकती हैं भूलें! आपको भूलें झलकती हैं क्या, अंदर? प्रश्नकर्ता : दिखती हैं। भूल रहित चारित्र जिसके दर्शन में हो और भूलवाला चारित्र जिसके वर्तन में हो, उससे दिखती हैं? दादाश्री : उससे तुरन्त पता चलता है कि दर्शन भूल बिना का है। इसलिए, भूल बिना का चारित्र जिसे दर्शन में होता है, वह कह देता है कि यह भूल हुई। अलौकिक सामायिक वह पुरुषार्थ! यानी भूलें दिखाई देने लगीं न, वे जितनी दिखती हैं, उतनी जाती हैं। आपको थोड़ी भूलें दिखती हैं? प्रतिदिन पाँच-दस दिखती जाती हैं न? वे दिखीं, उतना दिखने का बढ़ता जाएगा। अभी तो बहुत दिखेंगी। जैसे-जैसे दिखती जाएगी, वैसे-वैसे आवरण खुलते जाएँगे और वैसे ज्यादा दिखती जाएगी। निजदोष दर्शन से... निर्दोष! महात्मा। पुरुषार्थ है, पर वह सभी लोगों को आता नहीं है। हमारे यहाँ जो वह सामायिक करवाते हैं न, वह बड़ा पुरुषार्थ है। भूल का स्वभाव कैसा है कि भूल दिखी कि भूल जाने की तैयारी कर लेती है। भल खड़ी नहीं रहती। दोष हो उसमें हर्ज नहीं है, पर दोष दिखाई देना चाहिए। दोष होता है, उसका दंड नहीं है, पर भूलें दिखती हैं उसका इनाम मिलता है। किसीको खुद की भूलें दिखती नहीं हैं। आत्मा प्राप्त होने के बाद निष्पक्षपाती होता है, इसलिए भूलें दिखने की शुरूआत होती है। यह ज्ञान देने के बाद आप निष्पक्षपाती हुए, इसलिए देह का पक्षपात आपको पड़ौसी जितना रहा है। इसलिए जो भूल होती है, वह दिखती रहती है। दिखी इसलिए जाने लगती है। नहीं छूता कुछ शुद्ध उपयोगी को अब यह ज्ञान ही आपकी जो भूलें हैं, वह दिखलाता है। 'चंदूभाई' किसीके साथ उग्र हो गए तो 'आपको' पता चल जाता है कि ओहोहो! भूलें कितनी सारी थीं। मतलब भूलें दिखें उसका नाम आत्मा। निष्पक्षपाती हुए, उसका नाम आत्मा। जब तक आप आत्मा हो तब तक दोष छूता नहीं है। यदि आप शुद्ध उपयोग में हो, तो आपके हाथों कोई काम गलत हो जाए तो भी आपको छूता नहीं है। शुद्ध उपयोगी को कोई कर्म छूता नहीं है। इसलिए हमें आचार्य महाराज पूछते हैं कि, 'हम नंगे पैरों घूमते हैं जीवों की अहिंसा पालने के लिए और आप तो मोटर में फिरते हो। आपका ज्ञान सच्चा है, वह हम कबूल करते हैं, पर आपको दोष नहीं लगता होगा?' मैंने कहा कि, 'हम शुद्ध उपयोगी हैं।' आरोप लगाने से, अटके आगे का विज्ञान सामनेवाला निर्दोष दिखाई दे तो दोषित कौन दिखेगा? प्रश्नकर्ता : जिसके पास अज्ञान अधिक है, उसे ज्यादा दोषित लगता है। दादाश्री : हाँ, सामनेवाला मनुष्य दोषित लगता है। और जिसके पास कुछ दोष बंद हों, ऐसा नहीं है। वह तो मार खाएगा, तब अनुभव होगा, तब दोष बंद होंगे। मैं जानता हूँ कि ये बिना अनुभव के बंद नहीं होंगे। बंद करवाएँ, वह गलत है। जितना करना हो, उतना होता है, ऐसा है। और वह करते हैं कुछ

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