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निजदोष दर्शन से... निर्दोष! दादाश्री : पिछले जन्म के पापों को लेकर ही ये भूलें हैं। पर इस जन्म में फिर भूलें मिटती ही नहीं हैं और बढ़ाते जाते हैं। भूल को मिटाने के लिए भूल को भूल कहना पड़ता है। उसका पक्ष नहीं लेना चाहिए। यह ज्ञानी पुरुष की चाबी कहलाती है। इससे चाहे जैसा ताला खुल जाता है।
निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
भूल मिटाए वह परमात्मा । जिसने एक बार नक्की किया हो कि मुझमें जो भूलें रही हों उसे मिटा देनी है, वह परमात्मा हो सकता है! हम अपनी भूल से बँधे हैं। भूल मिटे तब तो परमात्मा ही हैं! जिसकी एक भी भूल नहीं, वह खुद ही परमात्मा है। यह भूल क्या कहती है? 'तू मुझे जान, मुझे पहचान।' यह तो ऐसा है कि भूल को खुद का अच्छा गुण मानते थे। भूल का स्वभाव कैसा है कि वह हमारे ऊपर शासन चलाती है। पर भूल को भूल जाना तो वह भाग जाती है। फिर खड़ी नहीं रहती। जाने लगती है। पर यह तो क्या करते हैं कि एक तो भूल को भूल जानते नहीं हैं और ऊपर से उसका पक्ष लेता है। मतलब भूल को घर में ही भोजन कराते हैं।
दिए आधार भूलों को, पक्ष लेकर प्रश्नकर्ता : दादा, भूल का पक्ष किस तरह लिया जाता है?
दादाश्री : यह हम किसीको डाँटने के बाद कहें कि, 'हमने उसे नहीं डाँटा होता तो वह समझता ही नहीं। इसलिए उसे डाँटना ही चाहिए।' इससे तो वह 'भूल' समझती है कि इस भाई को मेरा अभी तक पता ही नहीं चला है और उल्टे मेरा पक्ष लेता है। इसलिए यहीं खाओ, पीओ और रहो। एक ही बार यदि अपनी भूल का पक्ष लें तो उस भूल का बीस साल का आयुष्य बढ़ जाता है। किसी भी भूल का पक्ष नहीं लेना चाहिए।
चाबी भूलें मिटाने की मन-वचन-काया से प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में क्षमा माँगते रहना। हर कदम पर जागृति रहनी चाहिए। अपने में क्रोध-मान-माया-लोभ के कषाय तो भूलें करवाकर उधारी करवाएँ, ऐसा माल है। वे भूलें करवाते ही हैं और उधारी खड़ी करते हैं, पर उसके सामने हमें तुरन्त ही, तत्क्षण माफ़ी माँगकर जमा करके चोखा कर लेना चाहिए। यह व्यापार पैन्डिग नहीं रखना चाहिए। यह तो दरअसल नक़द व्यापार कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : अभी जो भूलें होती हैं, वे पिछले जन्म की हैं न?
ज्ञानी पुरुष आपकी भूल के लिए क्या कर सकते हैं? वे तो मात्र आपकी भूल बताते हैं, प्रकाश डालते हैं, रास्ता दिखाते हैं कि भूलों का पक्ष मत लेना। पर यदि भूलों का पक्ष लें कि, 'हमें तो इस दुनिया में रहना है, तो ऐसा कैसे कर सकते हैं?' अरे! यह तो भूल को पोषण देकर उसका पक्ष मत लेना। एक तो मुआ, भूल करता है और ऊपर से कल्पांत करता है, तो कल्प (कालचक्र) के अंत तक रहना पड़ेगा!
भूल को पहचानने लगा, तो भूल मिटती है। कुछ लोग कपड़े खींचखींचकर नापते हैं और ऊपर से कहते हैं कि आज तो पाव गज कपड़ा कम दिया। यह तो इतना बड़ा रौद्रध्यान और फिर उसका पक्ष? भूल का पक्ष नहीं लेना होता है। घीवाला घी में किसीको पता नहीं चले ऐसे मिलावट करके पाँच सौ रुपये कमाता है। वह तो मल के साथ वृक्ष बो देता है। अनंत जन्म खुद ही खुद के बिगाड़ देता है।
बंद करो कषायों का पोषण किसी मनुष्य को भूल रहित होना हो तो उसे हम कहते हैं कि केवल तीन ही साल क्रोध-मान-माया-लोभ को खराक मत देना। तो सभी बेजान हो जाएँगे। भूलों को यदि तीन ही वर्ष खुराक नहीं मिले तो वे घर बदल देती हैं। दोष, वही क्रोध-मान-माया-लोभ का पक्ष। यदि तीन वर्ष के लिए पक्ष कभी भी नहीं लिया तो वे भाग जाएंगे।
ज्ञानी पुरुष के बताए बिना मनुष्य को अपनी भल का भान नहीं होता है। ऐसी अनंत भूलें हैं। यह एक ही भूल नहीं है। अनंत भूलों ने घेर लिया है।
प्रश्नकर्ता : पर ज्यादा दोष दिखते नहीं हैं। थोड़े ही दिखते हैं।