Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 18
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! है जगत्! पर उसमें आपकी चुनौती नहीं है तो कोई आपका नाम देनेवाला नहीं है। किसीके भी भाव में आपका भाव नहीं है तो कोई आपको बाँधनेवाला नहीं है। ऐसे बाँधे तो पार ही नहीं आए न! आप स्वतंत्र हो, कोई आपको बाँध सके ऐसा नहीं है। एक में से अनंत, अज्ञानता से निजदोष दर्शन से... निर्दोष! रास्ते में कोई गरीब मनुष्य मिला और बहुत रो रहा हो तो आप उसे ग्यारह रुपये दे रहे हों, तो यह भाई कहेगा कि रहने दो न! उसे एक ही रुपया दो न! ग्यारह रुपये उसे किसलिए देते हैं?' अब वह लेनेवाला, देनेवाले आप और इसने मना किया यानी अंतराय पड़ा। उसको मिल रहा था उसमें अंतराय पड़ा। उस अंतराय कर्म से रुपये उसके पास जमा नहीं होंगे। यह आँख हाथ से दब जाए तो चीज़ एक हो, तो दो दिखाई देती हैं। आँख, वह आत्मा का रियल स्वरूप नहीं है। वह तो रिलेटीव स्वरूप है। फिर भी, एक भूल होने से एक के बदले दो दिखती हैं न? ये काँच के टुकड़े जमीन पर पड़े हों तो कितनी आँखें दिखती हैं? यह ज़रा-सी भूल से कितनी सारी आँखें दिखती हैं? वैसे ही यह आत्मा खुद दबता नहीं है, पर संयोगों के प्रेशर (दबाव) से एक के अनंत रूप दिखते हैं। यह जगत् सारा भगवत् स्वरूप है। इस पेड़ को काटने का केवल भाव ही करें तो भी कर्म चिपके ऐसा है। सामनेवाले का ज़रा-भी खराब सोचा तो पाप लगता है और अच्छा भाव करे, तो पुण्य बँधता है। हम यहाँ सत्संग में आएँ और यहाँ लोग खड़े हों, तो होता है कि ये सब क्यों खड़े हैं? तब मन में भाव बिगड़ता है। उस भूल के लिए, उसका इसलिए तुरन्त ही प्रतिक्रमण करना पड़ता है। दो ही वस्तुएँ विश्व में संयोग और शुद्धात्मा दो ही हैं। संयोग खड़े क्यों हुए? संयोग सभी को अलग-अलग आते हैं। हाँ, किसीको सारी ज़िन्दगी कोई मारनेवाला नहीं मिलता और किसीको सारी ज़िन्दगी में कितनी ही बार मार खानी पडती है। उसे ऐसा संयोग क्यों आता है और इसे ऐसा क्यों? क्योंकि उसने किसीको मारने का भाव ही नहीं किया था, इसलिए उसे ऐसा संयोग और इसने मारने के ही भाव किए थे, इसलिए इसे ऐसा संयोग। मतलब ऐसे संयोग किसलिए आए, उसके भी कारण मिलें ऐसा है। ऐसा संयोग किस कारण से मिला, वह भी पता चले ऐसा है। अब यह जो-जो सब किया, ये उसके ही सारे संयोग इकट्ठे हुए हैं। कोई नया संयोग नहीं है। आपका कोई ऊपरी है नहीं, वैसे ही आपका कोई अंडरहैन्ड भी नहीं है। जगत् सारा स्वतंत्र है। आपकी भूलें ही आपकी ऊपरी हैं बस, हमारी भूलें होती हैं वे ही! भूलें और ब्लंडर्स!!! यानी आपकी भूल नहीं हो तो कोई आपका नाम देनेवाला भी नहीं है वर्ल्ड में। देखो, रास्ते में कोई नाम देता है? पुलिसवाले, चेकिंगवाले कोई कुछ परेशान करता है कहीं? तंग करता है? क्योंकि यदि आपकी भूल नहीं होगी तो कोई नाम ही नहीं लेगा। निमंत्रण धौल को, मुआवजे के साथ कोई हमें गालियाँ दे, हमें बुरा सुनने को मिला, वह तो बहुत पुण्यवान कहलाता है, नहीं तो वह मिलता ही नहीं न ! मैं पहले ऐसा कहता था, आज से दस-पंद्रह साल पहले, कि भाई, कोई भी मनुष्य पैसों की अड़चनवाला हो, तो मैं कहता हूँ कि मुझे एक धौल मारना, मैं पाँच सौ रुपये दूंगा। एक आदमी मिला था, मैंने उससे कहा कि 'तुझे पैसों की कमी है न? सौ-दो सौ की? तो तेरी कमी तो आज से ही पूरी हो जाएगी। मैं तुझे पाँच सौ रुपये दूंगा, तू मुझे एक धौल मार।' तब बोला, 'नहीं दादा, ऐसा नहीं हो सकता।' मतलब धौल मारनेवाले भी कहाँ से लाएँ? मोल लाएँ तो भी ठिकाना पडे, ऐसा नहीं है और गालियाँ देनेवाले का भी ठिकाना पडे ऐसा नहीं है। तब जिसे घर बैठे ऐसा फ्री ऑफ कॉस्ट (मुफ्त में) मिलता हो तो वह भाग्यशाली ही कहलाएगा न! क्योंकि मुझे तो पाँच सौ रुपये देकर भी कोई मिलता नहीं था।

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