Book Title: Nijdosh Darshan Se Nirdosh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 8
________________ दादाजी की आगवी (मौलिक) खोज है! वीतराग के पास खुद के सारे दोषों की आलोचना करने पर वे दोष तत्क्षण चले जाते हैं। 'जैसे भूल मिटती है, वैसे सूझ खुलती जाती है' परम पूज्य दादाजी का यह सिद्धांत सीख लेने जैसा है। _ 'जो फरियाद करता है, वही गुनहगार है!' तुझे सामनेवाला गुनहगार क्यों दिखा? फरियाद किसलिए करनी पड़ी? टीका करनी यानी दस का करना एक! शक्तियाँ व्यर्थ होती हैं और नुकसान होता है। सामनेवाले की भूल दिखे उतनी नालायकी अंदर रहती है। बुरे आशय ही भूलें दिखाते हैं। हमें किसने न्यायाधीश (नियुक्त किया)? खुद की प्रकृति के अनुसार काम करते हैं सभी। परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, 'मैं भी मेरी प्रकृति के अनुसार कार्य करता हूँ। प्रकृति तो होती ही है न! पर हम मुँह पर कह देते हैं कि मुझे तेरी यह भूल दिखती है। तुझे जरूरत हो तो स्वीकार लेना, नहीं तो एक तरफ रख देना!' प्रथम घर में और फिर बाहरवाले सभी निर्दोष दिखेंगे तब समझना कि मुक्ति के सोपान चढ़े हैं। खुद की भूलों का पता कब चलता है? ज्ञानी पुरुष दिखाएँ तब। सिर पर ज्ञानी पुरुष नहीं हों, तो सब स्वच्छंद ही माना जाएगा। उजाले की भूलों का तो कभी हल निकलता है, पर अंधेरे की भूलें जाती ही नहीं हैं। अंधेरे की भूलें यानी 'मैं जानता हूँ!!!' अक्रम ज्ञान की प्राप्ति के बाद मात्र अंदर का ही देखने में आए तो आप 'केवलज्ञान' सत्ता में होंगे। अंश केवलज्ञान होता है, सर्वांश नहीं। भीतर मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार को देखते रहना है। परसत्ता के पर्यायों को देखते रहना है। 'वस्तु, वस्तु का स्वभाव चूके वह प्रमत्त कहलाता है। वस्तु उसके मूल धर्म में रहे, वह अप्रमत भाव।' मोक्ष कब होता है? 'तेरा ज्ञान और तेरी समझ भूल बिना की होगी तब।' भूल से ही रुका हुआ है। जप-तप की ज़रूरत नहीं है, भूल बिना के होने की जरूरत है। मूल भूल कौन-सी? 'मैं कौन हूँ?' का अज्ञान। वह भूल कौन मिटाएँ? ज्ञानी पुरुष ही। दोष निकलें किस तरह? दोष पैठे किस तरह, वह पता चले तो निकालने का रास्ता मिले। दोष श्रद्धा से, प्रतीति से पैठते हैं और श्रद्धा से प्रतीति से वे निकलेंगे। सौ प्रतिशत मेरी ही भूल है ऐसी प्रतीति हो, फिर उस भूल का एक प्रतिशत भी रक्षण नहीं हो तब वह भूल जाती है! जो-जो भगवान हुए, वे अपनी-अपनी भूलें मिटाकर भगवान हुए थे! परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, 'भूल किसे दिखती है? भूल बिना का चारित्र संपूर्ण दर्शन में हो और भूलवाला वर्तन उसके वर्तन में हो तो उसे 'हम' मुक्त हुआ कहते हैं' हमें हमारी सूक्ष्म से सूक्ष्म, वैसे ही सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम सभी भूलें दिखती हैं।' दोष होता है, उसका दंड नहीं है पर दोष दिखता है, उसका इनाम है। इनाम में दोष जाता है। वह आत्मज्ञान के बाद खुद, खुद के लिए निष्पक्षपाती होता है, इसलिए खुद की सभी भूलें देख सकता है! 14 दूसरों के नहीं, पर खुद के ही दोष दिखने लगें तब समझना कि अब हुआ समकित! और जितने भी दोष दिखते हैं वे हए बिदा, हमेशा के लिए! सामनेवाले के अवगुण या गुण दोनों ही देखने नहीं चाहिए। अंत में तो दोनों ही प्राकृत गण ही हैं न! विनाशी ही हैं न! उसके शुद्धात्मा ही देखने चाहिए। परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, 'जेबकतरा हो या चारित्रहीन हो, उसे भी हम निर्दोष ही देखते हैं! हम सत् वस्तु को ही देखते हैं। वह तात्त्विक दृष्टि है। हम पैकिंग को नहीं देखते!' जगत् को निर्दोष देखने की यह एक मात्र 'मास्टर की' है।

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