Book Title: Navtattva Prakaran Author(s): Nilanjanashreeji Publisher: Ratanmalashree Prakashan View full book textPage 9
________________ ( अमृत-स्वर ) तीन प्रश्न उठने जरुरी हैं और उनका समाधान भी जरुरी है। पहला प्रश्न है - मैं कौन हूँ? दूसरा प्रश्न है - मेरा लक्ष्य क्या है ? तीसरा प्रश्न है - लक्ष्य को पाने का रास्ता क्या है ? इन तीन प्रश्नों में जीवन का राज छिपा है । मैं कौन हूँ, यह जाने बिना लक्ष्य के प्रति रुचि का जागरण संभव नहीं है। और लक्ष्य को पाने की उत्कट प्यास जगे बिना कोई भी व्यक्ति उसे पाने का रास्ता नहीं पूछा करता । प्रस्तुत ग्रन्थ हमें इन तीन प्रश्नों का समाधान देता है। नवतत्त्वों में इन तीनों प्रश्नों के उत्तर छिपे हैं । और किसी ग्रन्थ का अभ्यास न भी कर पाये, लेकिन यदि इस ग्रन्थ का बोध प्राप्त कर लिया, तो आप जैन दर्शन और जीवन दर्शन का ज्ञान पा लेते हैं। मुख्यतः तत्व दो ही है। जीव और अजीव ! इन दो तत्वों को ही तत्वार्थ सूत्र में सात और नवतत्व प्रकरण में नौ तत्वों के रूप में व्याख्यायित किया जब जिनेश्वर विद्यापीठ की नींव रखी गई, तब पाठ्यक्रम के निर्माण एवं उसके प्रकाशन की विशद चर्चा चली। उसमें यह तय किया गया कि लेखन, विवेचन कुछ नवीनता लिये हों और अपने आप में पूर्ण हो । एक कार्ययोजना बनाई गई और आलेखन के लिये कार्य का विभाजन किया गया । उसके अन्तर्गत मुनि मनितप्रभ द्वारा जीव-विचार प्रकरण पर कार्य किया गया, जिसका प्रकाशन हो चुका है । कर्मग्रन्थ का प्रकाशन भी तैयारी में है। नवतत्त्व के बहुत सारे संस्करण उपलब्ध होने पर भी यह संस्करण कुछ अलग और अनूठा है। जो न केवल पाठशालाओं के लिये उपयोगी होगा, पर साधु साध्वियों और अध्यापकों के लिये भी उपयोगी होगा। साध्वी डॉ. नीलांजना ने इस आलेखन / विवेचन में बहत परिश्रम किया है और नवतत्वों को नये ढंग से प्रस्तुत किया है। उसमें प्रतिभा है, बुद्धि-वैभव है, तत्वबोध है । मैं कामना करूँगा कि भविष्य में अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर नये-नये ग्रन्थों के सर्जन करेंगी। - - - - - - - - - - - - - - उपाध्याय मणिप्रभसागर - - - - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरणPage Navigation
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