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(२६) बो जी जाशुं हवे ॥ गु० ॥ अम उपरें हो राज, थर जाउँ सुखें जी ॥ पण चलण न देशुं देव ॥ गु०॥ मू० ॥ ७॥ फरी गोठडी हो राज, किहांथी तुमार डीजी ॥ ए तो बनतां बनी गश् गोठ ॥ गु०॥ अमे कोथी हो राज, नहीं तो करां प्रीतडी जी, जे पव ने न पडे कोठ ॥ गु० ॥ मू० ॥ ॥ तुमे खामी हो राज,अौं अमीरस बोलता जी॥तेणें माहीं हेलव्यु हीर ॥ गु० ॥ नहिं तो कोश्ने हो राज, धीरे केम बांहडी जी ॥ अमें श्रावक धर्मी धीर ॥गुणामूगाए॥ अमें तमने हो राज, दीधी एक पुत्रिका जी, कि स्यो पडदो राख्यो नांहि ॥गुण॥ एम निःस्नेही हो राज, तुमे पर देशीया जी॥ द्योडो हली मली बेद दूसाह्य ॥ गु० ॥ मू॥१०॥ नली जाणी हो राज, तुमारी प्रीतडी जी, हवे चालो जो माया लाय ॥ गु० ॥ सुंदर मंदिर हो राज सवि, जे तुमारडां जी तूमें रहो रहो महाराय ॥ गु० ॥ मू० ॥ ११॥ तव रुदत्त हो राज, बोल्यो हसी शाहशुं जी॥ह केलं नहीं ले काम ॥ गुं० ॥ अमें लागर हो राज, वेपारी वाणीया जी ॥ अडे कारज बदलां धाम ॥ गुण ॥ मू०॥ १२॥ वली मिलशुं हो राज, जो
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