Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७५) पान ॥ एम करी ग्रीष्म ऋतु जणी, निर्वहिशुं धरि मान ॥२३॥ पूर्व ढाल ॥ शतु वर्षाघन जड मंमें, धारा अनिमेष न खंभे ॥ शिखी दापुर चातकं बोले, कामी काम पण खोले ॥२४॥ गुणिजन बालापे मल्हार, वली सुंदर नेम आहार ॥ वहे सरिता ह रिता तेम धरणी, केम निर्वहशो चरण आचरणी॥ ॥२५ ॥ दोहा ॥ मोहमहाघननी बटा, धरशु खूप संवेग ॥ अकाविहग उद्घोषणा, खोली मने धरि नेग ॥ २६ ॥ राग मल्हार सद्याय , निःशंकी आहार ॥ सत्य नदी मुनिगुण हरित, ए पावस प्रतिचार ॥२७॥ पूर्वढाल ॥ ऋतु शरदें कमल शशी ऊगे, वधे तेज नयन कर पूगे॥ जरे पीयूष शुक्ति समाय, तस बिंदुनां मौक्तिक थाय ॥२॥ योगीश्वर ग्रह नवरात्रि, करे याग यगन संयात्री॥मली कन्या गरबो गाश, करी मंगल दीपक ना ॥णा अति म होत्सव वाणा प्रयाणां, संयमिने क्याथी सयाणां ॥ वसती बाहिर एकाकी,न फरे पुनि जेम ए रांकी॥३॥ दोहा।समकित शशीजुवालडो,तास तत्व ज्ञानांश॥ ज्ञान नियम निर्मल थशे, लोकालोक प्रकाश ॥३१॥ दयाशुक्तिमांहि अचल, मौक्तिक धर्म सशुद्ध ॥
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