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( १०३ )
शे, जाशे थिर संसार जी ॥ परहरी राज्य रा मातेम प्रमदा, याशे शुचि अणगार जी ॥ न० ॥ ८ ॥ पालशे निरतिचारे संयम, अष्ट कर्म कुश करशे जी ॥ केवल ज्ञान महासुख दाता तेह ति हां अनुसरशे जी ॥ न० ॥ एए ॥ करशे सुरवर क मलनी रचना, देशना मधुरी देशे जी ॥ अक्षय प दवीय लीला, परमोदयथी लदेशे जी ॥ न० ॥ १० ॥ एह चरित्र नमया सतीनुं, शील संबंधें गा युं जी ॥ जाणी गेहली नमया थइने, राख्युं शील सवायुं जी ॥ न० ॥ ११ ॥ एह संबंध बे शील कुला में, जो जो सुगुण जगीसें जी ॥ नरहेसर बाहुब लि वृत्ति, प्रगट संबंध ए दीसे जी ॥ न० ॥ १२ ॥ ए संबंध वे साचो पण कोई, कल्पित करी मत जाणो जी ॥ याविर्भूत संबंध छापर जे, कवि रचना ते प्र माणो जी ॥ न० ॥ १३ ॥ धन्य धन्य नमया महा सती केरी, सरस कथा में गाइ जी ॥ कीधी पावन सुंदर रसना, सरस सुखद उपाइ जी ॥ न० ॥ १४ ॥ एह महासतीनी परें कोइ, पालशे शील अनंग जी ॥ ते पण वांबित सुख अनुभवशे, लेहशे ज्ञान तरंग जी ॥ न० ॥ १५ ॥ चोथुं व्रत निवृत्तिनुं कार
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