Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(११) ॥१४॥ कृषिदत्ता पण शुज परें रे, अति पामी प्रति बोध ॥ चारित्र सेवा सुंडियां रे, टालि सयल विरोध रे॥चे० ॥१५॥ अनुक्रमे विचरंता श्राविया रे, श्रा यसुहस्ती गुरुराय ॥ महेश्वरदत्त हरख्यो हिये रे, रुषिदत्ता हित लाय रे ॥चे॥१६॥ दीक्षा बेहु ए श्रादरी रे, बोडी सयल जंजाल ॥ मोहन विजयें जली कही रे, ए बासठमी ढाल रे ॥ चे ॥ १७॥
॥दोहा॥ ___ इषिदत्ता दीक्षा ग्रही, पाले निरतीचार ॥ श्रायु वशें जश् उपनी, निर्जरने आगार ॥१॥ मुनि महेश्वरदत्त पण, दिदातणे प्रत्नाव ॥ जवसायर हे लांतरे, बेसी धर्मने नाव ॥२॥ अनुक्रमें पाम्या पु एयथी, सुरपर्यंत संयोग ॥ विलसे निजदेवी थकी, विषयादिकनो लोग ॥३॥ जो जो नमया महा सती. करियो ए उपकार॥ महापतित पतिने कियो, महोटो सुर शिरदार ॥४॥ सुंदर नमया महासती, वसुधा करे विहार ॥ करे मार्तंड प्रजापरें, नवि कैरव विस्तार ॥५॥ कहेणी रहेणी बिहु सरिस, तेह वो नाण प्रकाश ॥ कर्मतणी करे निर्जरा, उपश मने यावास ॥६॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/045c708742947f3dd7810b5cff7668aef8e8b9f5442ed1e5b43bfad7644df0fe.jpg)
Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198