Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ (१ए४) ण, तेम सौजाग्य प्रदाता जी ॥ यति उपदेशे एम सुखहंती, शील महोदय शाता जी० ॥ न ॥ १६ ॥ नमयासुंदरी केरुं रच्युं बे, चरित्र अनोपम एह जी ॥ कवि कुल को हांसी न करजो, करजो शुचि ससनेह जी ॥न ॥ १७॥ मेंतो सुकवि जरुसो श्रा णी, रास रच्यो बे साचें जी॥ नहीं तो शी मति मा हरी जे हं, होड्य करुं करी वांचे जी ॥ न॥ १७ ॥ तेह कारण ए रास रसीलो, नमया सुंदरीकेरो जी ॥ कंगजरण पणे सहु करजों, पण दूषण मत हेरो जी ॥ न ॥ १५ ॥ विधिमुख शिवमुख कृषि इंड( १७५४) संवत संज्ञा एहजी ॥ मास पोष वदी तेरश दिवसें, उशना वार गुण गेह जी ॥ न० ॥ २० ॥ तुंगया नगरी उपमा पामे, समी नयरी सु विशेषे जी ॥ चतुरपणे चोमासु कीg, सद्गुरुने आदेशे जी ॥ न ॥१॥ तप गब गगन विकाशन दिनमणी, विजयरत्नसूरि राजें जी ॥ रचना रास तणी ए कीधी, आग्रह संघने काजें जी॥न ॥२॥ श्री विजयसेन सूरीश्वर सेवक, कीर्ति विजय उव धाया जी ॥ तस पद पंकज षट्पद उपमा, मान वि जय कविराया जी॥ न ॥२३॥ जास शिष्य क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198