Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 194
________________ ( १९७२ ) ॥ ढाल त्रेसठमी ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ नमया सुंदरी महासती, सू धो संयम पाले जी ॥ ध्यानानल संयोगें सुपरें, कर्म समिध प्रजाले जी ॥ न०॥१॥ अवधि ज्ञान तणे अनु सारें, आयुष कर्म विचारी जी ॥ मास तपी हित या णी दाखे, संलेषणा सुखकारी जी ॥ न० ॥ २ ॥ लाख चोराशी जीव खमावी, सम जावें मन आणी जी ॥ शुद्ध देव गुरु धर्म त्रि करणें, निश्चल चित्तें ध्याइ जी ॥ तृप्ति जाव जाव्यो मन शुद्ध, परम म होदय पाइ जी ॥ ३ ॥ नमया सुंदरी ताम वियो, पोहती निकट सुर लोक जी ॥ देवपणे सुर सुख लीलायें, जोगवे तिहें अशोक जी ॥ न० ॥ ४ ॥ पंदित तांडव नित्य खंमित, देव पडह पट वाजे जी ॥ विविध तूरिनिर्घोष प्रसारें, विबुध गृहांगण गा जे जी ॥ न० ॥ ५ ॥ एम सुपर्व तणी प्रजुताई, जो गवे महासती जीव जी ॥ पुनरपि मानव जव पडि वजशे, महा विदेहे तदीव जी ॥ न० ॥ ६ ॥ लदेशे नृप पदवी ससलूणी, जीतशे रियण वृंद जी ॥ विषय तणां सुख निज वनिताथी, छानुनवशे एह अमंद जी ॥ न० ॥ ७ ॥ सह गुरु वाणी श्रवणे सु For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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