Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 191
________________ ( १८५ ) ए शास्त्री, गीतार्थ होय गर्जत ॥ ३ ॥ कोइक एहवां शास्त्रबे, जेह जणे अद्याप ॥ खरथी लक्षण जाणियें, रूप रंग गुण व्याप ॥ ४ ॥ पण स्वरलक्षण वातडी, मूरखने न कहाय ॥ साहामो गुण अवगुण करे, हिपय पाननो न्याय ॥ ५ ॥ तेह कारण श्रुति शास्त्रानो, करजो खप सहु लोय ॥ जेहथी उत्तम संपदा, एह कथाथी होय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बासवमी ॥ कपुर होय ति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ महेश्वरदत्त चित्त चमकीयो रे, निसुणी कथा कल्लोल ॥ धन्यधन्य एम पवत्तणी रे, धर्मथी रंग बे चोल रे ॥ १ ॥ चेतन चेते नहीं कां मूढ, लही उपशम गूढ रे ॥०॥ पण एणें स्वरलक्षण लधुं रे, ते साचो उल्लास ॥ महेश्वरदत्ते मांगियो रे, नमयानो पश्चात्ताप रे ॥ ० ॥ २ ॥ सही मुज नमया अंगना रे, जणी हशे लक्षण शास्त्र ॥ गायन लक्षण कह्युं हतुं रे, बेठे बते यानपात्र ॥ चे० ॥ ३ ॥ पण में मूढ अजाणते रे, की धूं धमनुं काम ॥ वनमां सतीने परहरी रे, थ‍ निष्कृप जिराम रे ॥ चे० ॥ ४ ॥ मुत वनिता हती महासती रे, पण हुं थयो अज्ञान ॥ मुफ सरीखो For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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