Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 179
________________ (१७७) सुंदरी, शिबिकाए सोत्साह ॥ तूरि तणा निर्घोष ब हु, गय गयणांगण तांह ॥५॥ पुरजन कौतुक पे खवा, मलियां थोका थोक ॥श्राव्यां श्म गुरु संन्नि धि, जोडीने कर कोक ॥६॥ ॥ ढाल अहावनमी ॥ ते तरीया जाय ते तरीया ए देशी ॥ आर्य सु हस्ती सूरीश्वर चरणे, प्रणमी नमया विनवेरे ॥ श्रापो मुझने चारित्र खजानो, अवसर श्राव्ये एह वे रे ॥१॥जयवंता विचरोजगमांहें ॥ ए आंकणी ॥ जे अनुसरे मुनि मुजारे, तास चरणरज तिलक करीजे, सेवियें थइ अनुसा रे ॥ ज० ॥२॥ गुरु स हदेवतणी ग्रहे आणा, सघले अनुमति दीधी रे॥ अहो जावुके अहो नमयासुंदरी, प्रीति संयमथी कीधी रे ज० ॥३॥ मन थिर ने किंवा नथी ता हरं, संयम बे अति दोहिर्बु रे ॥ सायर जल तर, बे नुजाथी, निःस्पृहने जे सोहिर्बु रे ॥ ज० ॥४॥ सिंह थश्ने व्यो को संयम, सिंह थश्ने निर्वहेजो रे, जो न पाली शको प्रव्रज्या, तो गृहवासे रहेजो रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ नमयासुंदरी विनवे गुरुने, खामी कांहे बिहाडो रे ॥ साहमुं बल बंधावी मु Jain Educationa Intentional For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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