Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 183
________________ (११) कही कडुवा कडुवा बोल, घर बाहेर काढी गल हब देश्ने जी ॥ कहे कुमतिने हो तेह, दासी अहिं साए मुफ, कहे जांडी श्रावडे आवडे जी ॥कण॥५॥ थर कांखी हो कटुकवचनें कुमति तेवार, नमयाने मूकी संजारवा जी ॥ करे सुमतिथी हो नित रंग कबोल, श्रुताननी गोष्टि विचारवा जी ॥क॥॥ मति ज्ञानने हो तिहां वेंच्यां फोफल पान, बहु इवां रंग वधामणां जी ॥ तव उपन्यु हो नमयाने अवधिज्ञान, मोहादिक हुवां दयामणां जी ॥ क०॥ ॥ ७ ॥ हवे अनुक्रमें हो, करे नूतल तेह विहार, हर महासती ताम पवत्तणी जी ॥ पडीबोहें हो, जवि चातुर नवियण वृंद, देवे देशना अतिही सोहामणी जी ॥ कम् ॥ ॥ जेणे सांनती हो तस देशना श्रवणे नव्य, तेणे जाण्यु पीयुष पीधबुंजी॥ जस दीधी हो मुख धर्माशीष मनोज्ञ, ते तो अ व्यय जीवित दीधढुंजी ॥ क० ॥ ए॥ बहु साहू णीहो, मती महासतीने परिवार, एक एकथी अधिक गुणे करीजी॥त कीधो हो जेणें पावन थापण देह, उपदेश महारयणे जरी जी ॥ क०॥ ॥१०॥ नमयो महासती हो, पामी सहगुरुनो श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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