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(१५६) ये बेहु सरीखो ॥ मा॥ श्रावे ते कनेहो, अर्थी श्रा को ॥ मा०॥प्राप्ति जेहवी हो, तेह पामे ॥मा०॥ पण नवि वारे हो, तेबहु थामे ॥ मा०॥ ६॥ कीर्ति प्रसरी हो, धनदत्त केरी ॥ मा०॥ वाजे जगमां हो, कीर्ति नेरी ॥ मा०॥ सोखी हरखे हो, कीर्ति कसके मा० ॥ दोषी नर ते हो, देखी न शके ॥ मा० ॥७॥ विप्र महोदय हो, ऐहवे नामें ॥ मा० ॥ अति खल निवसे हो, तिण हिज गामे ॥ मा० ॥ धनहत्तसाथे हो, करी मित्राय ॥ मा०॥ वातें रीजवे हो, करी पवित्रा॥ मा० ॥ ॥ खलने मलता हो, वार न लागे ॥ मा॥ काम सस्याथी हो अलगो नागे। मा० ॥ गरल अप्ररव हो, खल निर्वासे ॥मा॥ श्रवण पहोते हो, विष प्रतिनासे ॥ ए॥ विप्र प्ररू पे हो, मित्र महारा ॥मा० ॥ अमे शुल वांडक हो, अहोनिश तहारा ॥ मा० ॥ तुक सुख सुखिया हो, पुण्य पवाडे ॥ मा० ॥ होय जो कूवे हो, आवे अ वाडे ॥ मा० ॥ १० ॥ एम धन उपरे हो, कां तुं रूठो ॥ मा० ॥ पुंठ विचारी हो, जोय अपुंगे ॥मा॥ जो धनधोरणि हो, ताहरे होशे ॥ मा० ॥ तो तुज साहमुं हो, कोहु जोशे ॥ मा० ॥ ११॥ धनविण
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