Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( १५९)
दान देयंतें वधती हुती, लछी परिगल गेहें रे, दान निवारे धनदत्त साथै, लच्छी थइ निःस्नेही रे ॥ क० ॥ २ ॥ दानें लबी होय मद माती, विण दानें कुश थाये रे ॥ जोजनथी तनु पुष्ट होय तेम, जोजन विण न चलाये रे ॥ क० ॥ ३ ॥ मणि माणिकने सोनुं रूपुं, एहथी रीशें जराणां रे ॥ श्याम वर्ण कोपें धग धगता, हुइ श्रंगार समाणा रे ॥ क० ॥ ४ ॥ जलवट थलवट केरी लछी, तिणे ग ति जलनी कीधी रे ॥ जो जो धन दत्त मूढ पणाथी, दरिद्रीने साह्य दीधी रे ॥ क० ॥ ५ ॥ सुगुण सहो दर सयल सनेही, तेणे पण हित चोखुं रे ॥ दीतुं तिहां तेणे धनदत्त द्वारें, दान विटपि विण मोखुं रे ॥ क० ॥ ६ ॥ धनदत्त निर्धनने वशे जोलो, न मतो पुरमां लाजे रे ॥ पूर्व लाज अबे धनदत्तनी, जेह करे ते बाजे रे ॥ क० ॥ ७ ॥ विप्र म होदय हवे अवसर, धन दत्त मंदिर श्राव्यो रे ॥ निर्धन दीगे तेणे नयणे, सान करी समजाव्यो रे ॥ क० ॥ ८ ॥ एह शी सूरि जन ताहरी वस्था, ए शुं देवें कीधुं रे ॥ रोहण शैल समो रय पायर, पुंज जलाली लीधो रे ॥ क० ॥ ए ॥ नेत्र
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