Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 172
________________ (१७०) हज पुण्य प्रमार्जियुं, वली नम्यो पुर्जग होय ॥धा ॥६॥.जो होश्ये निकलंक हो, तो परतुं कलंक प्रका शियें॥करी जाणो निर्धार, ते कारण तुमे जाउँ हो। नूखशो पुरनी वाटडी, खोटा न करो उपचार ॥ ध० ॥ ७॥ धनदत्त तिहां मनमांहि हो, आलोचे उमी आलोचना, ए केम लहे मुफ वात ॥ एणे जे मूळ नाख्यु हो, ते साची संघली वातडी, खोटा नहिं अवदात ॥ धम् ॥ ७॥ वाडवने को बुब्धो हो, में तातनुं वचन विसारियुं, जलो थ्यो हुँ जोर ॥ मूरखने वली होवे हो, माथे मोटां शिंगो, कहेने कहुं करी शोर ॥ध० ॥ ए॥ मानव तो नवि दीसे हो, दीसे ए तो देवता, नहीं तो जाणे केम ॥ सारथवाहने नांखे हो, धनदत्त बेहु कर जोडीने, प्रगट प्रकाशी प्रेम ॥ धम् ॥ १०॥ तमे कोण बो बुद्धिवंता हो,मुफ आगल साचुं नांखजो, दाखो प्रगट स्वरुप ॥ धनदत्तना कथनथी हो, सा र्थपनो दंन विसर्जियो, कां सुररूप अनूप ॥ ध० ॥ ॥ ११ ॥ निर्मल देही जेही. हो, फाटिकनी जाणे म यूषिका, अंबुज परिमलपूर ॥ नूषणने संजारे हो, संपूजीत तन सोहामणो, तेजें न जिते सूर ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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