Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 174
________________ ( १७२ ) धनदत्रों सुंदरपरें, मननुं चिंतव्युं कीध ॥ श्रवसानें सुख अनुजव्यां, सकल मनोरथ सिद्ध ॥ २ ॥ अथ इति पर्यंत एकह्यो, धनदत्तनो अवदात ॥ नमया कर जोडी कहे, श्रवण अतिथि करो तात ॥ ३ ॥ विना वचन जिनराजनां, जे परबुद्धि राचंत ॥ तेहनी गति धनदत्त जिम, जाणो तात महंत ॥ ४ ॥ ए जणे नमया सुंदरी, तात जणी तिथिवार ॥ श्राणा द्यो चारित्रणी, मानीश ए उपकार ॥ ५ ॥ जो पुत्री करी वडो, तो पूरो मननो कोड ॥ आलंबन यो अडवड्यां, विनति करूं कर जोडि ॥ ६ ॥ ॥ ढाल सत्तावनमी ॥ यतणीनी देशी ॥ कहे नमयाने जनक ते वारे, ग्रहो चारित्र का विचारें, बहु क्रतुमां यति व्रतमें रहेनुं, तुथी थाशे ए किम सहेतुं ॥ १ ॥ प्रसरे हिम ऋतु चिदुपासे, शालि मंजरी फुलें उल्लासें ॥ माले आरुढा जन सोहे ॥ पशुपंखी पडतां टोहे ॥ ॥ २ ॥ पुरवरसी वन शोमा दीसे परिजन वन मांदे जगी ॥ नट वंश चढीने खेले, दाता पण दान केले ॥ ३ ॥ केइ ताजा पोंख आरोगे, म सली कर संपुटने योगें ॥ कहो ए मुनिवेषमें किदां For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

Loading...

Page Navigation
1 ... 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198